क्या भगवान हमसे कर्म करवाते हैं?

क्या भगवान हमसे कर्म करवाते हैं, जब हम उसी के अंश हैं?


क्या भगवान हमसे कर्म करवाते हैं?


जय श्री कृष्ण प्रिय पाठकों, कैसे हैं आप? आशा करते हैं कि आप सुरक्षित होंगे।

आध्यात्म चिंतन से जुड़ा यह प्रश्न बहुत ही दिलचस्प है- यदि हम ईश्वर के अंश हैं, तो फिर हमें कर्म क्यों करना पड़ता है? भगवान हमें कर्म करने के लिए क्यों प्रेरित करते हैं? इस लेख में हम इस विषय को बहुत ही सरल भाषा में समझने का प्रयास करेंगे।

भगवान और आत्मा का संबंध

शास्त्रों में कहा गया है-

ममैवांशो जीवलोके जीवभूतः सनातनः। (श्रीमद्भगवद्गीता 15.7)

अर्थात, सभी जीवात्माएँ मेरे ही सनातन अंश हैं।

इसका सीधा अर्थ यह है कि हम भगवान के अंश हैं, लेकिन फिर भी हमें कर्म करने की आवश्यकता होती है। आखिर ऐसा क्यों?

कर्म का सिद्धांत: भगवान हमें कर्म क्यों करवाते हैं?

1. स्वतंत्रता (Free Will) का उपहार

भगवान ने हमें एक बहुत अनमोल चीज़ दी हैस्वतंत्रता!

हम यह तय कर सकते हैं कि हमें क्या करना चाहिए और क्या नहीं।

हमें अपने कर्मों का चुनाव करने की पूरी आज़ादी दी गई है।

अगर भगवान ही सबकुछ स्वयं कर देते, तो हमें सीखने का अवसर ही नहीं मिलता।

उदाहरण के लिए, अगर कोई माता-पिता अपने बच्चे के लिए हर काम खुद करने लगें, तो वह बच्चा कभी आत्मनिर्भर नहीं बन पाएगा। इसी तरह, भगवान हमें कर्म करने की स्वतंत्रता देकर हमें आगे बढ़ने का अवसर देते हैं।

2. यह संसार एक विद्यालय है

हम इस संसार में सीखने के लिए आए हैं। हमारे कर्म ही हमें सही और गलत का अनुभव कराते हैं।

  • बुरे कर्म करने से हमें सीख मिलती है कि ऐसा दोबारा न करें।
  • कर्मों के फल ही हमें आध्यात्मिक रूप से आगे बढ़ाते हैं।
  • भगवान हमें कर्म करने देते हैं ताकि हम अपने अनुभवों से सीखें और आत्मा का विकास कर सकें।

3. श्रीकृष्ण का कर्मयोग सिद्धांत

भगवद्गीता में श्रीकृष्ण ने अर्जुन से कहा—

कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।

(श्रीमद्भगवद्गीता 2.47)

अर्थात, तुम्हारा अधिकार केवल कर्म करने में है, फल की चिंता मत करो।

भगवान चाहते हैं कि हम कर्म करते रहें, क्योंकि यही जीवन का नियम है। हमें यह ध्यान रखना चाहिए कि हमारे कर्म अच्छे हों, निष्काम हों, और धर्म के अनुसार हों।

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अगर भगवान ही सबकुछ करवा रहे हैं, तो पाप-पुण्य का क्या मतलब?

यह प्रश्न भी महत्वपूर्ण है- यदि भगवान ही कर्म करवाते हैं, तो फिर कोई पापी या पुण्यात्मा कैसे बनता है?

  • भगवान हमें स्वतंत्रता देते हैं, लेकिन कर्मों का चुनाव हमारा होता है।
  • अगर हम अच्छा कर्म चुनते हैं, तो उसका शुभ फल हमें मिलता है।
  • अगर हम बुरा कर्म चुनते हैं, तो हमें उसका दुष्परिणाम भी भुगतना पड़ता है।
  • भगवान सिर्फ मार्ग दिखाते हैं, लेकिन निर्णय हमें स्वयं लेना होता है। जैसे सूर्य सभी को प्रकाश देता है, लेकिन कोई उस प्रकाश का उपयोग अध्ययन के लिए करता है और कोई बुरे कार्यों के लिए।

क्या हमें कर्म नहीं करना चाहिए क्योंकि सब कुछ भगवान करवा रहे हैं?

अगर हम सोचें कि भगवान ही सबकुछ करवा रहे हैं, तो हमें कुछ करने की क्या ज़रूरत है?, तो यह गलत सोच होगी।

जीवन का नियम है कि बिना कर्म किए कुछ भी संभव नहीं।

भोजन की इच्छा होने पर भी हमें खुद खाना खाना पड़ता है।

परीक्षा में अच्छे अंक लाने के लिए पढ़ाई करनी पड़ती है।

इसलिए, यह सोचना कि भगवान ही सबकुछ कर रहे हैं और हमें कुछ नहीं करना चाहिए, यह गलत धारणा है।

संक्षिप्त जानकारी 

कर्म ही जीवन का आधार है

  • भगवान ने हमें इस संसार में भेजा है ताकि हम अपने कर्मों के द्वारा आत्मा का उत्थान कर सकें।
  • कर्म हमें अनुभव देते हैं।
  • कर्म हमें जीवन के उतार-चढ़ाव से परिचित कराते हैं।
  • कर्म हमें आध्यात्मिक रूप से आगे बढ़ाने में सहायक होते हैं।
  • इसलिए, हमें कर्म करना चाहिए लेकिन फल की चिंता नहीं करनी चाहिए। श्रीकृष्ण ने भी यही कहा है कि कर्म करना हमारा धर्म है और मोक्ष की प्राप्ति के लिए निष्काम भाव से कर्म करना आवश्यक है

 क्या भगवान हमारे कर्मों को देख रहे हैं?

तो, आइए हम सभी शुभ और धर्म के अनुरूप कर्म करें और भगवान के सच्चे भक्त बनें!

प्रिय पाठकों, यह लेख आपको कैसा लगा? अपने विचार कमेंट में प्रकट करें। जय श्री कृष्ण!

FAQs (Frequently Asked Questions) for the Blog Post

1. यदि हम ईश्वर के अंश हैं, तो हमें कर्म क्यों करना पड़ता है?

भगवान ने हमें कर्म करने की स्वतंत्रता दी है ताकि हम अनुभव प्राप्त करें और आत्मा का विकास कर सकें। यह संसार एक विद्यालय की तरह है, जहाँ कर्म ही हमारे सीखने का माध्यम है।

2. क्या भगवान ही हमसे कर्म करवाते हैं?

भगवान हमें कर्म करने के लिए प्रेरित करते हैं, लेकिन कर्म का चुनाव हमारा होता है। गीता में श्रीकृष्ण ने कहा है कि प्रत्येक व्यक्ति को अपने कर्मों के अनुसार फल मिलता है।

3. यदि भगवान चाहते हैं कि हम कर्म करें, तो पाप और पुण्य का क्या अर्थ है?

भगवान हमें मार्ग दिखाते हैं, लेकिन कर्मों का चयन हमारा होता है। यदि हम धर्म और सत्य के मार्ग पर चलते हैं, तो पुण्य मिलता है, और अधर्म के मार्ग पर जाने से पाप।

4. क्या कर्म किए बिना भी मोक्ष प्राप्त हो सकता है?

नहीं, गीता के अनुसार कर्म के बिना मोक्ष संभव नहीं। लेकिन मोक्ष के लिए निष्काम कर्म करना आवश्यक है—ऐसा कर्म जिसमें फल की इच्छा न हो।

5. क्या भगवान हमारे जीवन के हर निर्णय को नियंत्रित करते हैं?

भगवान ने हमें बुद्धि और विवेक दिया है ताकि हम अपने कर्मों का चुनाव कर सकें। वे हमें मार्गदर्शन देते हैं, लेकिन निर्णय और उसका परिणाम हमारे कर्मों पर निर्भर करता है।

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