भारत में शिक्षित लोग नास्तिकता और तामसिकता की ओर क्यों बढ़ रहे हैं?

क्यों भारत में अधिक शिक्षित लोग नास्तिकता और तामसिकता की ओर बढ़ रहे हैं?

एक भारतीय युवक पढ़ाई की मेज पर बैठा है, उसके चारों ओर अंधकार और तामसिक छायाएं हैं, जबकि एक कोने में एक मंद मंदिर का प्रकाश दिख रहा है।
आधुनिक शिक्षा और आध्यात्मिकता के बीच खोता हुआ संतुलन – जब बुद्धि बढ़ती है लेकिन आत्मा खाली रह जाती है।


जय श्री कृष्ण प्रिय पाठकों,

आशा है आप स्वस्थ और सुरक्षित होंगे।

आज हम एक ऐसे विषय पर बात करने जा रहे हैं, जो हमारे समाज में धीरे-धीरे अपनी जड़ जमाता जा रहा है—"शिक्षा के साथ आस्था क्यों घट रही है?" भारत जैसे धर्मप्रधान देश में जब लोग पढ़े-लिखे होते हैं, तो यह अपेक्षा होती है कि वे और गहराई से जीवन के उद्देश्य, आत्मा, धर्म और ईश्वर को समझेंगे।

लेकिन हो क्या रहा है?

आज के शिक्षित वर्ग में एक बड़ा हिस्सा या तो नास्तिक बन गया है, या फिर तामसिक प्रवृत्तियों की ओर झुक गया है।

आइए इसे समझने की कोशिश करें।

1. शिक्षा से डिग्री मिलती है, संस्कार नहीं

हमारे देश की वर्तमान शिक्षा व्यवस्था सिर्फ नौकरी और प्रतिस्पर्धा की दिशा में केंद्रित हो गई है। इसमें धर्म, आत्मा, परमात्मा, और आत्म-साक्षात्कार की शिक्षा लगभग गायब है।

जब बचपन से ही किसी व्यक्ति को यह नहीं बताया जाएगा कि ईश्वर क्या है, आत्मा क्या है, और जीवन क्यों मिला है — तो वह बड़ा होकर इन विषयों को तर्क से नकार देगा।

2. पश्चिमी सोच का प्रभाव

आज के शिक्षित युवाओं पर पश्चिमी देशों की सोच का गहरा असर है। वहां धर्म को व्यक्तिगत पसंद मानकर अक्सर तर्क और विज्ञान के आधार पर खारिज कर दिया जाता है।

यही सोच जब भारतीय युवाओं में आती है, तो वे भी यह मानने लगते हैं कि पूजा-पाठ, मंदिर, ध्यान—सब अंधविश्वास हैं।

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3. सोशल मीडिया से फैला भ्रम

शिक्षित लोग इंटरनेट पर ज्यादा समय बिताते हैं, और वहीं से उन्हें कई ऐसे विचार, वीडियो और लेख मिलते हैं जो धर्म का मज़ाक उड़ाते हैं, शास्त्रों पर सवाल उठाते हैं, और नास्तिकता को आधुनिक सोच बताते हैं।

ऐसे में जब कोई व्यक्ति भीतर से आस्थावान न हो, तो वह इन बातों से बहक जाता है।

4. धर्म के नाम पर ढोंग और पाखंड

कई बार जब पढ़े-लिखे लोग यह देखते हैं कि धर्म के नाम पर पाखंड, दिखावा और व्यापार हो रहा है — तो वे धर्म से ही विरक्त हो जाते हैं

वे सोचते हैं कि जब ईश्वर के नाम पर ये सब हो रहा है, तो ईश्वर का कोई अस्तित्व ही नहीं है।

लेकिन वे यह नहीं समझते कि दोष ईश्वर का नहीं, बल्कि कुछ स्वार्थी लोगों का है।

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5. तामसिकता क्यों बढ़ रही है?

जब व्यक्ति ईश्वर से जुड़ाव खो देता है, तो उसका मन केवल इंद्रियों के सुख में ही उलझ जाता है।

नशा, कामवासना, अहंकार, क्रोध, आलस्य, और हिंसा — ये सब तामसिक गुणों की पहचान हैं।

जब कोई व्यक्ति न ईश्वर को मानता है, न आत्मा को, न कर्मफल को- तब उसे कुछ भी गलत करने में संकोच नहीं होता।

6. आंतरिक शांति की तलाश गलत दिशा में

आज के पढ़े-लिखे लोग जीवन में हर चीज़ पा रहे हैं - पैसा, नौकरी, सुविधा, पर शांति नहीं।

और जब शांति नहीं मिलती, तो वे उसे नशे, रिश्तों या तामसिक सुखों में तलाशते हैं।

लेकिन ये सब क्षणिक है, और फिर भी मन खाली ही रहता है।

क्योंकि मन को शांति केवल आत्मा से मिलती है, और आत्मा ईश्वर से।

7. क्या आस्था अब मूर्खता मानी जाने लगी है?

आज अगर कोई युवक मंदिर जाता है, ध्यान करता है, या भगवान को याद करता है — तो कुछ लोग उसे पुराना विचारधारा वाला या कमज़ोर मानसिकता वाला कह देते हैं।

यही कारण है कि आज कई शिक्षित लोग भी अपने आस्तिक होने को छिपाते हैं, और धीरे-धीरे खुद भी उसे छोड़ देते हैं।

8 . संवाद की कमी

आधुनिक लोग धार्मिक गुरुओं या अनुभवी लोगों से बात करने की बजाय इंटरनेट और सोशल मीडिया पर उपलब्ध जानकारी पर ही निर्भर रहते हैं। इससे भ्रम और गलतफहमियाँ पैदा हो सकती हैं।

लेकिन ध्यान देने वाली बात यह है कि नास्तिकता और तामसिकता की ओर झुकाव स्वाभाविक नहीं है। यह अधिकतर गलतफहमियों, अनुभव की कमी और सही ज्ञान के अभाव के कारण होता है।

अगर शिक्षित लोग भी धर्म और अध्यात्म को सही रूप में समझें, उसके गहरे अर्थ को जानें और स्वयं अनुभव करें, तो वे न केवल नास्तिकता से बच सकते हैं बल्कि आध्यात्मिक उन्नति भी कर सकते हैं।

तो समाधान क्या है?

1. बचपन से बच्चों को आध्यात्मिकता और संस्कारों की शिक्षा दी जाए।

2. शिक्षा प्रणाली में धर्म और आत्मा को तर्क के साथ समझाया जाए।

3. धर्म के नाम पर पाखंड करने वालों को उजागर किया जाए, और सच्चे संतों की शिक्षा को प्रचारित किया जाए।

4. शिक्षित लोग योग, ध्यान, और आत्मचिंतन को जीवन में स्थान दें।

5. सोशल मीडिया पर धर्म का पक्ष रखने वाले जागरूक लोग आगे आएं।

अंत में — भारत की आत्मा धर्म है

भारत एक ऐसा देश है जहां ज्ञान और भक्ति साथ चलते हैं।

यहाँ वेदों से लेकर विज्ञान तक और मंदिरों से लेकर मिसाइलों तक की यात्रा एक ही भूमि पर हुई है।

अगर हम अपने बच्चों को सिर्फ विज्ञान, तकनीक, और पैसे की दौड़ में डालेंगे, और उन्हें आत्मा, संयम, और धर्म से दूर रखेंगे — तो आने वाले समय में केवल डिग्रीधारी, परंतु खोखले इंसान ही बचेंगे।

आइए, शिक्षित होकर भी आस्तिक बनें।

ज्ञान से अंधविश्वास मिटाएं, पर ईश्वर से नाता न तोड़ें।

ध्यान, प्रार्थना, सेवा और संयम — यही भारत की असली पहचान है।

अगर आपको यह लेख उपयोगी लगा हो, तो कृपया इसे एक दूसरे से share करें — ताकि और लोग भी विचार करें कि शिक्षा का सही अर्थ केवल किताबें नहीं, बल्कि आत्मा का जागरण भी है।

तो प्रिय पाठकों, कैसी लगी आपको पोस्ट ,हम आशा करते हैं कि आपकों पोस्ट पसंद आयी होगी। इसी के साथ विदा लेते हैं अगली रोचक, ज्ञानवर्धक जानकारी के साथ विश्वज्ञान मे फिर से मुलाकात होगी ,तब तक के लिय आप अपना ख्याल रखे, हंसते रहिए, मुस्कराते रहिए और औरों को भी खुशियाँ बांटते रहिए।

धन्यवाद, 

हर हर महादेव।

जय श्री राम। जय सनातन।

FAQs (अक्सर पूछे जाने वाले सवाल)

1. क्या शिक्षा व्यक्ति को नास्तिक बना देती है?

शिक्षा का उद्देश्य समझ और विवेक बढ़ाना है, लेकिन जब यह केवल भौतिक सोच तक सीमित रह जाती है, तब व्यक्ति आध्यात्मिक पक्ष से कटने लगता है।

2. तामसिकता क्या होती है?

तामसिकता एक मानसिक अवस्था है जिसमें आलस्य, भ्रम, क्रोध, मोह और निराशा जैसे भाव हावी हो जाते हैं।

3. क्या धार्मिक आस्था केवल अनपढ़ लोगों के लिए होती है?

नहीं, आस्था एक व्यक्तिगत अनुभव है जो शिक्षा से नहीं, आत्मबोध और अनुभव से गहराई पाती है।

4. क्या आधुनिक जीवनशैली ही नास्तिकता का कारण है?

आधुनिक जीवनशैली में गति और प्रतिस्पर्धा अधिक है, जिससे मनुष्य आत्ममूल्यांकन और ध्यान से दूर होता जा रहा है। हां यह भी एक बड़ा कारण है।

5. क्या कोई शिक्षित व्यक्ति आस्तिक भी हो सकता है?

बिलकुल हो सकता है । अनेक शिक्षित लोग गहन धार्मिक और आध्यात्मिक होते हैं। संतुलन ही मुख्य बात है।

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