क्या ग्रहों की अवस्था बदल देती है कुंडली का फल? जानिए बाल्य से वृद्ध तक का ज्योतिषीय रहस्य
जय श्री कृष्ण प्रिय पाठकों,
आशा करते हैं कि आप स्वस्थ होंगे, प्रसन्नचित्त होंगे
आपने कभी सोचा है कि कुंडली में ग्रहों की केवल स्थिति (house और sign) ही नहीं, बल्कि उनकी अवस्था यानी उम्र भी आपकी जीवन यात्रा को प्रभावित करती है?
जैसे इंसान का बचपन, युवावस्था या वृद्धावस्था उसके व्यवहार और सामर्थ्य को प्रभावित करती है, वैसे ही ग्रहों की अवस्थाएँ भी फल कथन में अहम भूमिका निभाती हैं।
इस लेख में हम जानेंगे —
ग्रहों की अवस्थाएँ क्या होती हैं?
ये अवस्थाएँ कैसे निर्धारित होती हैं?
और सबसे ज़रूरी बात — ये आपके जीवन को कैसे प्रभावित करती हैं?
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कुंडली में ग्रहों की अवस्थाएँ — बाल्य, कुमार, युवा और वृद्ध के आधार पर फल कथन। |
परिचय (ज्योतिष क्या है?)
ज्योतिष एक गूढ़ विद्या है जो न केवल हमारे भूत, वर्तमान और भविष्य का संकेत देती है, बल्कि हमारे जीवन के छोटे से छोटे पहलू को भी प्रभावित करने वाले सूक्ष्म तत्वों की व्याख्या करती है। जब हम किसी व्यक्ति की कुंडली का विश्लेषण करते हैं, तो उसमें कई बातों पर ध्यान दिया जाता है ,जैसे ग्रह की स्थिति, दृष्टि, युति, चाल, भाव, राशियाँ और नक्षत्र। इन्हीं में से एक महत्वपूर्ण और अक्सर उपेक्षित तत्व होता है, ग्रहों की अवस्था, जैसे: बाल्य (शैशव), कुमार, युवा, वृद्ध आदि।
बहुत से ज्योतिष प्रेमी या नवशिक्षार्थी इस प्रश्न से उलझन में रहते हैं कि ग्रह की अवस्था से फल कितना प्रभावित होता है?
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क्या युवा अवस्था वाला ग्रह हमेशा फलदायी होता है?
क्या बाल्य या वृद्ध ग्रह कमजोर माना जाता है?
आइए, इस पोस्ट में हम इसी विषय को विस्तार से समझते हैं।
ग्रहों की अवस्था क्या होती है?
ग्रह की अवस्था का अर्थ होता है — उस ग्रह का जीवनकाल या आयु-चक्र जैसा स्वरूप, जो उसकी डिग्री (degree) के आधार पर तय किया जाता है। किसी भी राशि में 30 अंश (degrees) होते हैं। ग्रह की स्थिति जिस डिग्री पर होती है, उसी के आधार पर उसकी अवस्था निर्धारित होती है।
आठ अवस्थाएँ (Ashta Avastha)
1. बाल्य (Infant/Bal Avastha): 0° – 6°
2. कुमार (Adolescent/Kumara Avastha): 6° – 12°
3. युवा (Youth/Yuva Avastha): 12° – 18°
4. प्रौढ़ (Mature/Vriddha Avastha): 18° – 24°
5. वृद्ध (Old/Ajeerna Avastha): 24° – 30°
6. मृत (Dead/Mrita Avastha): (कुछ शास्त्रों में वृद्ध को ही मृत माना गया है)
7. गर्भ (Foetal): कुछ पद्धतियों में 0° से कम या ग्रह अस्त होने पर
8. जाग्रत / सुषुप्त (Awake/Dormant): ग्रह का बल और दृष्टि
(सभी पद्धतियों में नाम अलग-अलग हो सकते हैं, लेकिन मूल भाव वही रहता है।)
84 वर्ष से ऊपर की आयु वाले लोग दृष्टसहस्रचन्द्रो के नाम से क्यों जाने जाते हैं जानने के लिए पढ़े-दृष्टसहस्रचन्द्रो: क्या होता है और इसकी विशेषताएँ?
क्यों महत्वपूर्ण है ग्रह की अवस्था?
हर ग्रह की अवस्था यह दर्शाती है कि वह ग्रह फल देने की स्थिति में है या नहीं। उदाहरण के लिए-
युवा अवस्था वाला ग्रह अपने चरम प्रभाव में होता है। वह ऊर्जा से भरपूर होता है और अपनी प्रकृति के अनुसार पूरा फल देता है।
बाल्य अवस्था वाला ग्रह अनुभवहीन होता है, इसलिए उसका फल अधूरा या भ्रमित हो सकता है।
वृद्ध अवस्था वाला ग्रह थका हुआ, कमजोर या निष्क्रिय हो सकता है।
यह ठीक वैसे ही है जैसे एक व्यक्ति अपने जीवन के विभिन्न चरणों में अलग-अलग तरह से कार्य करता है। बच्चे में क्षमता होती है लेकिन अनुभव नहीं, युवा में क्षमता और ऊर्जा दोनों होती है, वृद्ध में अनुभव होता है लेकिन शक्ति कम।
फल कथन में कितना असर डालती है अवस्था?
1. बाल्य अवस्था
ग्रह अभी “सीखने की प्रक्रिया” में है। वह कमजोर होता है।
- फल अधूरा, भ्रमित, देर से या बाधा के साथ मिलेगा।
- यदि शुभ ग्रह है, तो अपनी पूरी शुभता नहीं दे पाएगा।
- यदि अशुभ ग्रह है, तो भी हानि का पूरा असर नहीं करेगा।
2. कुमार अवस्था
ग्रह अब थोड़ा स्थिर हो रहा है, लेकिन अभी भी पूर्ण शक्ति में नहीं है।
फल
- प्रयास अधिक होंगे, लेकिन फल सीमित होंगे।
- ग्रह की प्रकृति के अनुसार, संघर्ष के बाद कुछ लाभ मिल सकता है।
3. युवा अवस्था
यह सबसे शक्तिशाली अवस्था है। ग्रह पूर्ण रूप से सक्रिय होता है।
फल
- ग्रह अपनी पूरी शक्ति से फल देता है।
- शुभ ग्रह अच्छे फल देगा, अशुभ ग्रह बड़ा कष्ट देगा।
- इस अवस्था में ग्रह की युति, दृष्टि और भाव का बहुत महत्व होता है।
4. प्रौढ़ / वृद्ध अवस्था
ग्रह अब थका हुआ या निष्क्रिय हो रहा है।
फल
- फल देर से मिल सकता है।
- काम करने की शक्ति कम हो जाती है।
- यदि अन्य शुभ प्रभाव हों तो कुछ सुधार हो सकता है।
ग्रहों की अवस्था से जुड़ी कुछ विशेष बातें
शनि यदि वृद्ध अवस्था में हो तो लाभदायक हो सकता है, क्योंकि शनि स्वयं वृद्ध ग्रह है।
चंद्रमा यदि बाल अवस्था में हो तो मन कमजोर, चंचल और भ्रमित होता है।
मंगल यदि युवा हो और शुभ दृष्टि में हो तो अत्यधिक पराक्रम देता है।
गुरु की वृद्ध अवस्था में ज्ञान का फल सीमित रह सकता है, लेकिन यदि उच्च का हो तो सुधार संभव है।
क्या अकेले अवस्था से फल निर्धारण करना सही है?
नहीं। ग्रह की अवस्था केवल एक आयाम है। पूर्ण फल कथन में इन बातों को एक साथ देखा जाना चाहिए-
- ग्रह की अवस्था
- ग्रह का बल (षड्बल)
- दृष्टि (Aspect)
- युति (Conjunction)
भाव स्थिति (House placement)
- दशा और गोचर
- नवांश, द्वादशांश इत्यादि चार्ट्स
इसलिए यदि कोई ग्रह बाल अवस्था में है लेकिन उच्च का है, शुभ दृष्टि में है, और दशा में है, तो वह अच्छा फल भी दे सकता है।
व्यक्ति के जीवन में विशेष शुभता, सफलता, सम्मान, और समृद्धि का संयोग बनाने वाला योग गज केसरी जानने के लिए पढ़े - गज केशरी योग का अर्थ,लाभ और प्रभाव हिन्दी मे
FAQs (अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न)
Q1. क्या हर ग्रह के लिए युवा अवस्था ही सर्वोत्तम होती है?
उत्तर: हां, अधिकांश ग्रहों के लिए युवा अवस्था फलदायी होती है क्योंकि वह अपनी चरम शक्ति में होता है। लेकिन कुछ ग्रह जैसे शनि, वृद्ध अवस्था में भी अनुकूल फल दे सकते हैं यदि अन्य स्थितियाँ अनुकूल हों।
Q2. क्या बाल अवस्था वाला ग्रह हमेशा खराब फल देता है?
उत्तर: नहीं, यह आवश्यक नहीं है। यदि वह शुभ ग्रह है, शुभ भाव में स्थित है और अन्य ग्रहों की दृष्टि से सुरक्षित है, तो मध्यम फल दे सकता है।
Q3. क्या कुंडली में सभी ग्रह युवा अवस्था में हों तो क्या जीवन अत्यंत अच्छा होगा?
उत्तर: ग्रहों की अवस्था अच्छी है, यह शुभ संकेत है, लेकिन अन्य कारकों (दृष्टि, युति, भाव स्थिति, दशा) को साथ में देखे बिना यह निष्कर्ष निकालना सही नहीं होगा।
यदि कुंडली में ग्रहण दोष है तो जानने के लिए पढ़े - कुंडली में ग्रहण दोष से बचने के उपाय
Q4. क्या ज्योतिष में ग्रहों की अवस्था की गणना सॉफ्टवेयर से की जा सकती है?
उत्तर: हां, आजकल के ज्योतिषीय सॉफ़्टवेयर ग्रहों की डिग्री के आधार पर आपको उनकी अवस्था बता देते हैं। लेकिन अनुभव के साथ स्वयं गणना करना सीखना अधिक उपयोगी होता है।
Q5. क्या यह अवस्था जन्मपत्रिका के अलावा गोचर (transit) में भी देखी जाती है?
उत्तर: जी हां, गोचर में भी ग्रहों की अवस्था देखी जाती है ताकि समझा जा सके कि ग्रह उस समय फल देने की स्थिति में है या नहीं।
Q6. क्या केवल ग्रह की अवस्था देखकर किसी का भाग्य तय हो सकता है?
उत्तर: नहीं। अवस्था केवल एक संकेतक है। पूरा फल जानने के लिए भाव, दृष्टि, योग, दशा, बल आदि को भी देखना ज़रूरी होता है।
Q7. क्या मृत अवस्था वाला ग्रह पूरी तरह निष्क्रिय होता है?
उत्तर: हाँ, अक्सर वह फल नहीं देता या फिर बहुत कमजोर असर करता है। लेकिन अगर वह उच्च का हो या शुभ दृष्टि से प्रभावित हो, तो कुछ राहत दे सकता है।
Q8. क्या युवा अवस्था वाले पाप ग्रह भी बुरा असर देते हैं?
उत्तर: हाँ, विशेषकर अगर वे 6th, 8th या 12th भाव में हों। युवा अवस्था का अर्थ है कि वे पूरी शक्ति से काम कर रहे हैं — अगर वो नकारात्मक हैं तो प्रभाव भी उतना ही होगा।
Q9. क्या अवस्था दशा (Mahadasha/Antardasha) में भी प्रभाव डालती है?
उत्तर: बिल्कुल। अगर कोई ग्रह अपनी दशा में युवा अवस्था में हो, तो वह तेज़ और स्पष्ट फल देगा। अगर मृत अवस्था में हो, तो उसकी दशा में अपेक्षित फल नहीं मिलते।
अंत मे
कुंडली में ग्रहों की अवस्था एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है, लेकिन यह अकेली निर्णायक नहीं होती। युवा अवस्था फल देने के लिए अनुकूल मानी जाती है, लेकिन यदि कोई ग्रह वृद्ध अवस्था में भी शुभ भाव में है और दशा उसका साथ दे रही हो, तो वह अच्छा फल दे सकता है। इसलिए ज्योतिष में हमेशा समग्र दृष्टिकोण अपनाना चाहिए।
ग्रहों की अवस्था को नजरअंदाज़ करना कुंडली विश्लेषण में एक बड़ी चूक हो सकती है। यह जानना जरूरी है कि ग्रह फल देने की स्थिति में है भी या नहीं।
किसी कुंडली में ग्रह युवा अवस्था में हैं, तो यह संकेत है कि व्यक्ति के पास स्पष्ट उद्देश्य, शक्ति और दिशा होगी।
लेकिन अगर ग्रह मृत या बाल्य अवस्था में हैं, तो फल मिलने में देरी, भ्रम या अधूरापन बना रह सकता है।
अतः जब आप अपनी कुंडली देखें या दिखाये तो केवल भाव या राशि न देखें, यह भी देखें कि ग्रह "कितनी उम्र में" फल देने आ रहे हैं।
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धन्यवाद
हर हर महादेव!