धनतेरस का असली अर्थ: जब अमृत भूलकर लोग कलश खरीदने लगे| Lord Dhanvantari

धनतेरस का असली अर्थ: जब अमृत भूलकर लोग कलश खरीदने लगे

जय श्री कृष्ण प्रिय पाठकों,

कैसे हैं आप? आशा है कि आप सुरक्षित और प्रसन्न होंगे।

हर साल जब धनतेरस आती है, तो बाजारों में भीड़ उमड़ पड़ती है। लोग नए बर्तन, आभूषण, गाड़ियाँ, इलेक्ट्रॉनिक वस्तुएँ और जाने कितनी चीज़ें खरीदते हैं। दुकानों पर कतारें लग जाती हैं, जैसे इस एक दिन में खरीदारी से सारा साल शुभ हो जाएगा। लेकिन क्या कभी आपने सोचा है कि इस दिन का असली अर्थ क्या था?

क्या सच में धनतेरस केवल “खरीदारी का त्योहार” है?

या फिर इसके पीछे कोई गहरी आध्यात्मिक भावना छिपी हुई है?

आइए बिना देरी किए विस्तार से समझते हैं-

भगवान धन्वंतरि अमृत कलश लिए हुए — धनतेरस का वास्तविक अर्थ और स्वास्थ्य का प्रतीक।
भगवान धन्वंतरि अमृत कलश के साथ - धनतेरस हमें सिखाता है कि स्वास्थ्य ही सबसे बड़ा धन है।


मित्रों! दीपों की मृदु ज्योति में, जब सृष्टि पर शांति उतरती है, तभी एक दिव्य रूप प्रकट होता है - भगवान धन्वंतरि, जिनके करों में अमृत कलश झिलमिलाता है। उनके मुख पर ऐसी करुणा है जो हर पीड़ा को मिटा दे, और उनके नेत्रों में ऐसी चमक है जो जीवन में आशा का दीप जला दे।

स्वर्णिम आभा में लिपटे, वे हमें याद दिलाते हैं कि सच्चा धन सोना या चाँदी नहीं, बल्कि स्वास्थ्य और संतोष है।

जब वे अपने एक हाथ से “अभय मुद्रा” में आशीर्वाद देते हैं, तो मानो कह रहे हों -

डरो मत, मैं अमृत का दाता हूँ।

शरीर और आत्मा का संतुलन ही जीवन का सबसे बड़ा धन है।”

इस दृश्य में न केवल एक देवता का रूप दिखाई देता है, बल्कि एक संदेश भी -

कि धनतेरस केवल वस्तु नहीं, भावना का पर्व है।

यह वह दिन है जब हमें भीतर के अमृत को पहचानना है, अपने तन-मन को स्वस्थ रखना है, और अपने जीवन को प्रकाशमय बनाना है।

धनतेरस का वास्तविक अर्थ

धनतेरस शब्द दो भागों से बना है - “धन” और “तेरस”।

यह कार्तिक मास की त्रयोदशी तिथि को मनाया जाता है, जब भगवान धन्वंतरि समुद्र मंथन से अमृत कलश लेकर प्रकट हुए थे।

वे आयुर्वेद के देवता और स्वास्थ्य के रक्षक माने जाते हैं।

इसलिए इस दिन का मूल संदेश यही था कि स्वास्थ्य ही सच्चा धन है।

पर समय के साथ यह भावना बदल गई।

अमृत कलश का अर्थ अब बर्तन खरीदना बन गया, और स्वास्थ्य की पूजा को व्यापारिक प्रतीक में बदल दिया गया।

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लोग टोटकों की ओर क्यों भागते हैं?

हर इंसान चाहता है कि उसके जीवन में सुख, शांति और समृद्धि बनी रहे।

लेकिन जब भीतर असुरक्षा होती है, तो व्यक्ति बाहरी वस्तुओं में शुभता खोजने लगता है।

किसी को लगता है — “आज बर्तन खरीदे तो लक्ष्मी आएँगी।”

किसी को विश्वास होता है - “सोना खरीदने से साल अच्छा गुजरेगा।”

पर बहुत कम लोग यह समझते हैं कि अगर स्वास्थ्य नहीं रहा, तो लक्ष्मी भी व्यर्थ है।

भगवान धन्वंतरि का प्रकट होना यह सिखाने के लिए था कि जीवन का अमृत शरीर की रक्षा और मन की शांति में है, न कि वस्तुओं की चमक में।

धन का सच्चा स्वरूप

धन का अर्थ केवल रुपयों या गहनों से नहीं है।

धन का अर्थ है -

  • अच्छा स्वास्थ्य,
  • सच्चा प्रेम,
  • संतोषी मन,
  • और सच्चे कर्म।

जो व्यक्ति इन चारों को संभालता है, वही वास्तव में धनी है।

क्योंकि सोना-चाँदी का मूल्य तब तक है जब तक जीवन स्वस्थ और संतुलित है।

आधुनिक धनतेरस और हमारी सोच

आज धनतेरस एक तरह से “बाजार का पर्व” बन चुका है।

हर जगह विज्ञापन, ऑफ़र और छूट की बातें होती हैं।

लेकिन क्या कोई विज्ञापन यह कहता है -

  • “आज अपने स्वास्थ्य के लिए एक संकल्प लीजिए”?
  • “आज अपने परिवार के साथ समय बिताइए”?
  • “आज किसी गरीब को औषधि दान कीजिए”?

नहीं। क्योंकि यह बातें बेचने योग्य नहीं हैं, लेकिन यही बातें जीवन को समृद्ध बनाती हैं।

क्या करना चाहिए इस दिन?

इस धनतेरस, जब आप दीप जलाएँ, तो एक दीप अपने स्वास्थ्य के नाम भी जलाएँ।

भगवान धन्वंतरि से प्रार्थना करें -

  • “हे प्रभु, तन और मन दोनों को स्वस्थ रखिए।
  • मुझे ऐसा विवेक दीजिए कि मैं धन का सही उपयोग कर सकूँ।”

अगर आप कुछ खरीदना चाहते हैं, तो खरीदी के साथ दान का एक दीप भी जलाएँ।

किसी जरूरतमंद को औषधि, वस्त्र या भोजन दें।

यह दान आपको वह पुण्य देगा, जो किसी सोने की वस्तु से नहीं मिल सकता।

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धनतेरस से जुड़े कुछ सामान्य प्रश्न (FAQs)

1. धनतेरस का असली अर्थ क्या है?

धनतेरस का अर्थ है - “धनयानी स्वास्थ्य और समृद्धि, तथा “तेरस” यानी तेरहवीं तिथि।

इस दिन भगवान धन्वंतरि समुद्र मंथन से अमृत कलश लेकर प्रकट हुए थे। असली संदेश यही है कि सच्चा धन स्वास्थ्य और संतोष है।

2. क्या धनतेरस पर बर्तन या सोना खरीदना जरूरी है?

नहीं, यह केवल एक परंपरा है। अगर आप कुछ नहीं खरीद सकते तो चिंता की बात नहीं।

आप बस अपने स्वास्थ्य, मन की शांति और परिवार की खुशहाली के लिए प्रार्थना करें - यही सबसे शुभ क्रिया है।

3. भगवान धन्वंतरि की पूजा कैसे करें?

  • भगवान धन्वंतरि की पूजा बहुत सरल है।
  • दीप जलाएँ, तुलसी पत्र या गंगाजल अर्पित करें, और मंत्र बोलें-
  • “ॐ नमो भगवते धन्वंतरये अमृतकलश हस्ताय सर्वभय विनाशाय नमः।”
  • फिर अपने और परिवार के स्वास्थ्य की कामना करें।

4. क्या धनतेरस केवल खरीदारी का त्योहार है?

नहीं, इसका उद्देश्य केवल खरीदारी नहीं, बल्कि स्वास्थ्य, दीर्घायु और संतुलित जीवन की कामना है।

खरीदारी केवल प्रतीकात्मक रूप में की जाती है - असली पूजन तो अमृत-भावना का है।

5. क्या गरीब व्यक्ति धनतेरस मना सकता है?

बिलकुल! धनतेरस अमीर या गरीब का पर्व नहीं है।

यह भावना का पर्व है। अगर कोई व्यक्ति सिर्फ एक दीप जलाकर भगवान का धन्यवाद करता है, तो वही सबसे बड़ा पूजन है।

6. धनतेरस के दिन क्या दान करना शुभ माना जाता है?

इस दिन औषधि, भोजन, वस्त्र या दीपक दान करना अत्यंत शुभ माना जाता है।

दान का अर्थ केवल देने से नहीं, बल्कि साझा करने से मिलने वाली संतुष्टि से है।

7. धनतेरस और धन्वंतरि जयंती क्या एक ही दिन होती हैं?

हाँ, दोनों एक ही दिन मनाई जाती हैं।

धनतेरस के दिन ही भगवान धन्वंतरि प्रकट हुए थे, इसलिए इसे धन्वंतरि जयंती भी कहा जाता है।

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संक्षिप्त जानकारी स्वास्थ्य ही सच्चा धन

धनतेरस हमें यह याद दिलाने आता है कि जीवन का सबसे बड़ा धन सोना-चांदी नहीं, बल्कि स्वास्थ्य और संतोष है।

भगवान धन्वंतरि का अमृत कलश हमें सिखाता है कि अमृत बाहर नहीं, हमारे भीतर की पवित्रता और संतुलन में है।

जब हम अपने शरीर की देखभाल करते हैं, मन को शांत रखते हैं और दूसरों की भलाई चाहते हैं,

तभी हम सच में “धन्य” बनते हैं।

यही इस दिन की सबसे बड़ी पूजा है - अपने भीतर के दीप को जलाना,

और यह स्वीकार करना कि स्वास्थ्य ही समृद्धि का पहला द्वार है।

शुभकामना संदेश

इस धनतेरस, भगवान धन्वंतरि का अमृत कलश आपके जीवन में स्वास्थ्य, शांति और संतोष का प्रकाश भर दे।

जय धन्वंतरि भगवान 🙏

प्रिय पाठकों,आशा करते है कि यह पोस्ट आपको पसंद आयी होगी। इसी के साथ विदा लेते हैं। ऐसी ही रोचक जानकारी के साथ अगली पोस्ट में फिर मुलाकात होगी। तब तक के लिए आप अपना ख्याल रखे। हंसते रहिए, मुस्कराते रहिए और औरों को भी खुशियाँ बांटते रहिए। 

धन्यवाद🙏 

हर हर महादेव 🙏 जय श्री कृष्ण 

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