माता-पिता की डांट बच्चों को तोड़ती है या बनाती है?
जय श्री कृष्ण प्रिय पाठकों, कैसे है आप लोग, हम आशा करते हैं कि आप सभी ठीक होंगे। दोस्तों! आज की इस पोस्ट हम जानेंगे माता-पिता की डांट बच्चों पर क्या असर डालती हैं? बच्चों को तोड़ती है या बनाती है?
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माँ-बाप की डांट में छिपा होता है वो स्नेह, जो बच्चों को गिरने से पहले थाम लेता है। |
बचपन एक कोरा काग़ज़ होता है, और माता-पिता उस पर जो रंग भरते हैं, वही बच्चे की सोच, आत्मा और आत्मविश्वास का आधार बनता है। इसलिए जब हम ये सवाल उठाते हैं कि "माता-पिता की डांट बच्चों को तोड़ती है या बनाती है?" तो जवाब सीधा नहीं, पर बेहद गहरा होता है।
डांट का असर इस बात पर निर्भर करता है कि वो कैसे दी गई, किस भाव से दी गई, और किस परिस्थिति में दी गई। आइए इसे एक भावनात्मक और सहज भाषा में समझते हैं
डांट या तिरस्कार? फर्क बहुत बड़ा है
मान लीजिए एक बच्चा गलती करता है। अब एक माँ उसे कहती है-
तू हमेशा उल्टी-सीधी बातें करता है, कुछ सीखता ही नहीं। तुझसे कुछ नहीं होगा।
और वहीं दूसरी माँ कहती है-
बेटा, ये तरीका सही नहीं है। मैं जानती हूँ तू समझदार है, कोशिश कर, मुझसे पूछ ले, अगली बार ध्यान रखना।
पहली डांट में अपमान है, निराशा है और अस्वीकृति है। दूसरी डांट में प्यार है, सुधार है और उम्मीद है। पहली डांट बच्चे को तोड़ सकती है, दूसरी डांट उसे बना सकती है।
क्यों चले जाते हैं बच्चे गलत रास्तों पर जानने के लिए पढ़े-बच्चों का गलत रास्ते पर जाना, कारण और समाधान
बच्चे आत्मा से सुनते हैं, सिर्फ कानों से नहीं
बच्चे बहुत संवेदनशील होते हैं। वे सिर्फ शब्द नहीं सुनते, वो आपके भाव और नजर भी पढ़ते हैं। अगर आप गुस्से में डांटते हैं लेकिन मन में प्यार है, तो कभी-कभी वो प्यार भी महसूस कर लेते हैं। लेकिन अगर आपकी डांट में ताना, तुलना, या गुस्सा भरा हो, तो वो बच्चे के मन में चुभ जाती है।
एक बच्चा बार-बार सुनता है कि – “तू फेल हो जाएगा”, “तू तो लायक ही नहीं है” – तो वह इन बातों को सच मानने लगता है। उसका आत्मविश्वास धीरे-धीरे खत्म हो जाता है।
डांट सुधारने के लिए होनी चाहिए, डराने के लिए नहीं
डांटना कोई बुरी बात नहीं है- अगर उसका उद्देश्य बच्चे को सही राह दिखाना हो। लेकिन जब डांट का उद्देश्य गुस्सा निकालना, अपमान करना या अपनी थकान उतारना हो, तब वही डांट जहर बन जाती है।
बच्चे की गलती पर उसे समझाना, उसके साथ बैठकर उसका कारण जानना- यही सही तरीका है।
बच्चों के मन को तोड़ना आसान है, जोड़ना मुश्किल
एक बच्चा अगर हमेशा डर में बड़ा होता है - कि मम्मी-पापा गुस्सा कर देंगे, चिल्ला देंगे - तो वह धीरे-धीरे खुद को बंद कर लेता है। वह सच बोलना छोड़ देता है, अपनी भावनाएं छिपाने लगता है। वह सोचता है- "मैं अच्छा नहीं हूँ" और यहीं से उसकी आत्मा पर चोट लगती है।
प्यार से दी गई सीख हमेशा असर करती है
एक बार एक शिक्षक ने अपने छात्र को बार-बार गलतियाँ करने पर प्यार से समझाया, लेकिन कभी गुस्सा नहीं किया। किसी ने पूछा — आप गुस्सा क्यों नहीं करते?
उन्होंने कहा- अगर मैं गुस्से से उसे सही कर भी दूँ, तो वो मुझसे डरने लगेगा। लेकिन अगर मैं प्यार से उसे बदल दूँ, तो वो मुझसे जुड़ जाएगा।
तो क्या करें माता-पिता?
1. बच्चे की गलती पर प्रतिक्रिया देने से पहले कुछ पल रुकें। सोचें कि क्या मैं उसे सुधारने के लिए बोल रहा हूँ या सिर्फ गुस्सा निकाल रहा हूँ।
2. सवाल पूछें, आदेश न दें। जैसे-"तुमने ऐसा क्यों किया? चलो समझते हैं"- इससे बच्चा खुलता है।
3. तुलना से बचें। कभी न कहें- "देखो शर्मा जी का बेटा कितना अच्छा है।" इससे बच्चा कुंठित हो जाता है।
4. गलतियों को सिखने का अवसर मानें। गलती का मतलब है बच्चा कुछ सीख रहा है।
5. डांट के बाद बात जरूर करें। बच्चे को बताएं कि आप उसे प्यार करते हैं, इसलिए समझा रहे हैं।
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अंत में
बच्चे मिट्टी जैसे होते हैं। हम जैसे उन्हें ढालेंगे, वो वैसे ही बनेंगे।
डांट में अगर प्यार, समझ और मार्गदर्शन हो- तो वह बच्चे को जीवन की चुनौतियों के लिए तैयार करती है। लेकिन अगर उसमें तिरस्कार, मार, या गुस्सा हो- तो वह बच्चा टूटने लगता है।
इसलिए ज़रूरी है कि हम डांटें नहीं ब्लकि समझाएं। उनकी बाते सुनें। और सबसे ज़रूरी उन्हें प्यार करें।
बच्चों की परवरिश में सबसे मजबूत औज़ार हमारा व्यवहार है और वही उन्हें तोड़ भी सकता है या बना भी सकता है।
प्रिय पाठकों, कैसी लगी आपको पोस्ट ,हम आशा करते हैं कि आपकों पोस्ट पसंद आयी होगी। इसी के साथ विदा लेते हैं अगली रोचक, ज्ञानवर्धक जानकारी के साथ विश्वज्ञान मे फिर से मुलाकात होगी ,तब तक के लिय आप अपना ख्याल रखे, हंसते रहिए, मुस्कराते रहिए और औरों को भी खुशियाँ बांटते रहिए।
धन्यवाद ,
जय श्री कृष्ण।