जब भगवान आसमान से इस धरती की ओर देखते होंगे, तो वह क्या सोचते होंगे?
जय श्री कृष्ण प्रिय पाठकों,
कैसे हैं आप? आशा है आप सुरक्षित और शांतिपूर्ण होंगे। आज हम एक गहरे और संवेदनशील विषय पर मनन करने जा रहे हैं – "जब भगवान आसमान से इस धरती की ओर देखते होंगे, तो वह क्या सोचते होंगे?"
हम अक्सर ऊपर देखते हैं और भगवान से शिकायतें करते हैं — दुख क्यों दिए, संघर्ष क्यों करवाए, इंसाफ क्यों नहीं हुआ?
पर क्या कभी हमने सोचा है कि भगवान जब हमें देखता है, तो उसके मन में क्या आता होगा?
जब भगवान आसमान से हमें देखता होगा, तो शायद उनकी आंखें भी भर आती होंगी... एक भावनात्मक लेख जो आपके दिल को छू जाएगा। पढ़ें और सोचें – क्या हम वही इंसान हैं जिन्हें भगवान ने बनाया था?
चलिए, कल्पना करते हैं उस दृष्टि की — उस मौन, शांत, पर सब कुछ देखती आंखों की, जिनमें कभी खुशी होती है, कभी चिंता, तो कभी दुःख।
आइए पहले इस कविता के जरिए जाने-
जब भगवान आसमान से ज़मीन को देखते होंगे,
धूप-छांव, रोशनी और अंधेरे में झांकते होंगे।
तो वो सोचते होंगे —
"मैंने तो इस धरती को स्वर्ग बनाया था,
हर दिल में प्यार का दीप जलाया था।
फिर क्यों अब ये नफ़रत की आग में जल रही है,
क्यों इंसानियत हर रोज़ मर रही है?"
मैंने तो बहारें भेजीं थीं फूलों के संग,
पंछियों की चहचहाहट में रखी थी उमंग।
फिर अब हर ओर सन्नाटा क्यों है,
ये इंसान इतना उदास क्यों है?
मैंने तो दिल दिए थे, दर्द समझने को,
आँखें दी थीं, अश्क पढ़ने को।
पर अब दिल पत्थर बनते जा रहे हैं,
आँखें सिर्फ़ भेदभाव में बहकती जा रही हैं।
हर मज़हब में सिखाया था इंसान को गले लगाना,
मंदिर, मस्जिद, चर्च, गुरुद्वारे - सबका था पैगाम एक-सा सुनाना।
पर अब दीवारें ऊँची होती जा रही हैं,
आत्मायें धर्म के नाम पर लड़ती जा रही हैं।
मैंने तो इंसान को बनाया था मोहब्बत के लिए,
फिर ये नफ़रत का कारोबार कहां से आ गया?"
"मैंने तो धरती पर फूल खिलाए थे,
फिर ये खून की बूंदें क्यों गिर रही हैं?"
"मैंने तो सबको एक ही मिट्टी से गढ़ा था,
फिर ये ऊंच-नीच, जात-पात किसने बना दी?"
"मैंने तो दिल दिए थे एक-दूजे का दर्द समझने के लिए,
फिर ये दीवारें, ये सीमाएं, ये युद्ध क्यों हैं?"
फिर भी कभी-कभी वो सोचते होंगे-
"शायद अभी कुछ चिराग बाकी हैं,
जो अंधेरे में भी रौशनी दे सकते हैं।
कुछ दिल अभी भी मोहब्बत में धड़कते हैं,
कुछ लोग अभी भी इंसानियत से लिपटे हैं।"
शायद भगवान कभी मुस्कुराता होगा जब कोई बच्चा मासूमियत से मुस्कुराता होगा।
शायद उनकी आंखें भर आती होंगी जब कोई भूखा इंसान दर-दर भटकता होगा।
क्या भगवान हमसे कर्म करवाते हैं?
हो सकता है वह सोचता हो-
"काश, इंसान समझ पाता कि सच्ची पूजा दिल होता है,
काश, वो जान पाता कि सबसे बड़ा धर्म 'इंसानियत' है।"
फिर भी, वह शायद उम्मीद नहीं छोड़ते,
क्योंकि हर बार जब कोई किसी भूखे को खाना खिलाता है,
किसी बूढ़े को सहारा देता है,
या किसी रोते को गले लगाता है—
तब भगवान राहत की सांस लेते होंगे और सोचते होंगे
"अब भी कुछ लोग बाकी हैं,
जिन्हें देखकर मैं फिर से मुस्कुरा सकता हूं।"
इस कविता के पीछे की भावना
यह कविता केवल कल्पना नहीं है, यह उस प्रश्न की ओर एक नजर है, जो हम सबको कभी न कभी खुद से पूछना चाहिए।
क्या हम वही हैं, जिनके लिए खुदा ने ये सुंदर दुनिया बनाई थी?
क्या हम वाकई उस करुणा को निभा रहे हैं जिसकी उम्मीद भगवान को हमसे थी?
क्या हम जरूरतमंद की मदद करते हैं?
क्या हम दिल से मुस्कुरा कर किसी रोते को गले लगाते हैं?
आज के समय में जब हर तरफ़ स्वार्थ, तनाव, और संघर्ष फैले हुए हैं, तब एक छोटा सा प्रेमपूर्ण कार्य, एक ईमानदार मदद, एक सच्ची मुस्कान- ये सब भगवान के लिए भी राहत बनते हैं।
भगवान को कब खुशी मिलती होगी?
जब कोई भूखे बच्चे को खाना खिलाता है।
जब कोई इंसान बिना भेदभाव के किसी का दर्द समझता है।
जब कोई माफ कर देता है, बदला नहीं लेता।
जब कोई बिना दिखावे के प्रार्थना करता है।
अंत में एक छोटी सी प्रार्थना
"हे भगवान , हमें वो नज़रिया दे
जो तू देखता है — मोहब्बत से, करुणा से।
हमसे कोई गलती हो तो माफ कर देना,
पर हमें इंसानियत निभाने की ताकत ज़रूर देना।"
क्या भगवान हमारे कर्मों को देख रहे हैं?
प्रिय पाठकों,
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