क्या सूखा मेवा धोकर भगवान को चढ़ाना उचित है?

क्या सूखा मेवा धोकर भगवान को चढ़ाना उचित है? – एक भक्त की भावना और धर्म का संतुलन

धोए-हुए-सूखे-मेवे-को-प्रेमपूर्वक-भगवान-को-अर्पित-करते-हुए-सुन्दर-दृश्य-जो-शुद्धता-और-सेवा-का-प्रतीक-है
धोए हुए सूखे मेवे को प्रेमपूर्वक भगवान को अर्पित करना — शुद्धता और सेवा का प्रतीक


हर हर महादेव!प्रिय पाठकों, कैसे हैं आप? आशा करते हैं कि आप ठीक होंगे। 

दोस्तों! आज हम एक ऐसे विषय पर बात करने जा रहे हैं जो भले ही छोटा लगे, लेकिन इसमें भक्त की गहराई से जुड़ी भावना छिपी होती है। सवाल है — "मैं प्रतिदिन भगवानजी को भोग के रूप में सूखा मेवा धोकर चढ़ाता हूँ ताकि उस पर कोई मैल न रह जाए। क्या ऐसा करना उचित है?"

आइए, इस सवाल को विस्तार से समझते हैं — भावनात्मक रूप से भी और धार्मिक दृष्टिकोण से भी।

1. भक्ति में नियम नहीं, भावना प्रधान होती है

हिंदू धर्म हो, वैदिक परंपरा हो या किसी संत की वाणी — सब एक बात पर सहमत हैं कि "भगवान भावना के भूखे होते हैं, भोग के नहीं।"

आप भगवान को क्या चढ़ाते हैं, उससे ज्यादा जरूरी यह होता है कि आप कैसे और किस मन से चढ़ाते हैं।

अगर कोई भक्त साफ-सफाई के भाव से, पवित्रता के ध्यान से सूखे मेवे को धोकर भगवान को अर्पित करता है, तो यह उसका भक्तिभाव ही है। इसमें कुछ भी अनुचित नहीं है, बल्कि यह दर्शाता है कि वह अपने आराध्य के लिए आदर और सत्कार का भाव रखता है।

2. सूखे मेवे को धोना – स्वच्छता या धर्म विरुद्ध?

आमतौर पर, सूखे मेवे जैसे – बादाम, काजू, किशमिश, अंजीर आदि बिना धोए सीधे भोग में चढ़ाए जाते हैं, खासकर यदि वे पैकेट में हों। लेकिन अगर ये खुले बाजार से लिए गए हों या इनमें धूल हो, तो इन्हें धोने में कोई दोष नहीं है।

आपका उद्देश्य साफ है, भगवान को कोई अपवित्र वस्तु न चढ़े। यही शुद्ध आचरण कहलाता है।

धोने से यह सुनिश्चित होता है कि भगवान को जो भोग अर्पित हो रहा है, वह पवित्र और निष्कलंक हो।

3. क्या शास्त्रों में कुछ कहा गया है इस विषय में?

शास्त्रों में यह नहीं कहा गया कि सूखा मेवा धोना आवश्यक है या नहीं। लेकिन शास्त्रों में यह ज़रूर कहा गया है कि जो भी अर्पण किया जाए, वह पवित्र, स्वच्छ, सात्विक और प्रेम से भरपूर हो।

पत्रं पुष्पं फलं तोयं यो मे भक्त्या प्रयच्छति।

तदहं भक्त्युपहृतमश्नामि प्रयतात्मनः॥

(भगवद गीता 9.26)

इस श्लोक में भगवान श्रीकृष्ण स्वयं कहते हैं — "जो भी भक्त श्रद्धा से पत्र, पुष्प, फल या जल अर्पित करता है, मैं उसे प्रेम से स्वीकार करता हूँ।"

यहाँ कहीं भी "किस तरह धोकर या न धोकर चढ़ाया जाए" — इस पर ज़ोर नहीं है, बल्कि भक्त की श्रद्धा और भावना पर बल है।

4. कैसे करें सूखा मेवा धोकर सही रूप में अर्पित?

अगर आप सूखा मेवा धोना चाहते हैं, तो इन बातों का ध्यान रखें:

  • धोने के बाद किसी साफ-सुथरे सूती कपड़े पर फैला कर सुखा लें
  • मेवे में नमी न हो, क्योंकि गीला भोग भगवान को अर्पित करना उचित नहीं माना जाता
  • सूखा और साफ होने के बाद ताम्र या पीतल की थाली में सजाकर भगवान को अर्पित करें
  • मन में प्रेम, मंत्रों से शुद्धता और हाथों में सफाई बनी रहनी चाहिए

5. भावनात्मक पक्ष – क्यों यह क्रिया अत्यंत सुंदर है?

जब कोई भक्त यह सोचता है कि — "मेरे द्वारा चढ़ाया गया मेवा यदि अशुद्ध हुआ तो मेरे प्रभु का अपमान हो सकता है", तो यह सोच अपने आप में भक्ति का सर्वोच्च उदाहरण है।

यह वही भाव है जैसे —

  • कोई माँ अपने बच्चे के लिए खाना धोकर, छानकर, छीलकर देती है
  • कोई सेवक अपने स्वामी के लिए बिना धूल-मिट्टी के भोजन परोसता है
  • या कोई प्रेमी अपने प्रिय को अर्पण करने से पहले वस्तु को स्वच्छ बनाता है
  • आपका यह छोटा-सा कार्य, प्रभु के प्रति आपकी प्रेम भावना और सेवा का प्रमाण बन जाता है।

सूखे मेवे की पवित्रता – आधुनिक दृष्टिकोण से भी समझें

आजकल बाजार में मिलने वाला सूखा मेवा कई बार धूल, रासायनिक पॉलिश, या कीटनाशक अंशों से युक्त होता है। ऐसे में अगर कोई भक्त भगवान को यह सोचकर धोकर चढ़ाता है कि जो हम स्वयं नहीं खा सकते वैसे भगवान को कैसे दें — तो यह सोच भक्ति की गहराई से जुड़ी होती है और स्वास्थ्य की दृष्टि से भी उपयुक्त है।

उदाहरण

कई मंदिरों में विशेष रूप से उन चीज़ों को धोया जाता है जिन्हें खुले में लाया गया हो, ताकि भगवान को शुद्ध वस्तु ही मिले।

(2) प्राचीन परंपराओं में शुद्धता का महत्व

यदि हम वेदों और अगम शास्त्रों की परंपराओं को देखें, तो वहाँ “शौच” (शारीरिक और मानसिक पवित्रता) और “आचार शुद्धि” पर बहुत बल दिया गया है।

कहा गया है:

"यदन्नं शुद्धं तद्भवति यत् जलं शुद्धं तत्पुनाति।"

(अर्थ: जो अन्न शुद्ध होता है, वही पवित्र होता है; जो जल शुद्ध होता है, वही पावन करता है।)

तो यदि कोई अर्पण करने से पहले किसी भी वस्तु को धोकर शुद्ध करता है, तो यह वैदिक भावना के अनुरूप ही है।

(3) मन में शंका या अपराधबोध न रखें

कई बार श्रद्धालु सोचते हैं कि शायद ऐसा करने से कोई शास्त्रविरोध हो रहा है। लेकिन याद रखें —

आपका प्रेम और विचारशीलता ही पूजा की आत्मा है।

यदि कोई व्यक्ति न धोकर चढ़ाता है लेकिन पूरी श्रद्धा से, वह भी उचित है। और यदि कोई धोकर चढ़ाता है — वह भी उतना ही सम्मानजनक है।

(4) भक्ति का अनुभव 

एक गृहिणी भक्त ने कहा-

मैंने जब पहली बार सूखा मेवा धोकर भगवान को चढ़ाया, तब मन में एक अलग ही तृप्ति का अनुभव हुआ। ऐसा लगा जैसे मैंने उन्हें कुछ शुद्ध, सच्चे भाव से दिया।

(5) धोने और सुखाने के व्यावहारिक सुझाव

  • यदि आप सुबह पूजा करते हैं, तो सूखे मेवे को रात को ही धोकर किसी ढँकी हुई थाली में सूखने के लिए रखें।
  • यदि धूप उपलब्ध है, तो कुछ देर धूप में भी रख सकते हैं जिससे कोई जीवाणु न रहें।
  • ध्यान दें कि सुखाने के बाद नमी न बचे, अन्यथा वह भोग अर्पित करने योग्य नहीं रहेगा।

(6) क्या मंदिरों में ऐसा किया जाता है?

बहुत से परंपरागत मंदिरों में जहाँ स्वच्छता पर विशेष ध्यान दिया जाता है, वहाँ वस्तुओं को धोने की प्रक्रिया अपनाई जाती है। विशेषकर दक्षिण भारत के मंदिरों में ‘नैवेद्य शुद्धि’ की विधियाँ बहुत गंभीरता से निभाई जाती हैं।

क्या बगलामुखी साधना में लहसुन और प्याज का त्याग अनिवार्य है?

FAQs सेक्शन जोड़ सकते हैं

क्या सूखा मेवा धोना अनिवार्य है?

नहीं, यह अनिवार्य नहीं है, लेकिन यदि आप शुद्धता के भाव से ऐसा करते हैं तो यह सराहनीय है।

क्या भगवान गीला मेवा स्वीकार करते हैं?

भगवान प्रेम देखते हैं, लेकिन भोग में गीली वस्तु रखने से वह जल्दी खराब हो सकती है। इसलिए सूखाकर ही अर्पित करें।

अगर जल्दी में हों तो बिना धोए चढ़ाना ठीक रहेगा?

हाँ, यदि आपके पास समय न हो, और मेवा स्वच्छ हो, तो श्रद्धा से चढ़ाया गया भोग स्वीकार्य है।

क्या इससे भगवान नाराज़ हो सकते हैं?

नहीं, भगवान नाराज़ नहीं होते, वे आपके प्रेम और मन की नीयत को देखते हैं, किसी प्रक्रिया की कठोरता को नहीं।

संक्षिप्त जानकारी 

हाँ, सूखा मेवा धोकर भगवान को चढ़ाना पूर्णतः उचित और भावपूर्ण कार्य है।

यह न तो किसी धर्म के विरुद्ध है, न ही किसी शास्त्रीय नियम का उल्लंघन।

बल्कि यह आपके अंदर बैठे उस प्रेम और आदर का प्रतीक है जो आप अपने आराध्य भगवान के लिए रखते हैं।

धर्म का सार नियम नहीं, प्रेम है।

परंपरा का अर्थ दिखावा नहीं, निष्ठा है।

और भक्ति का मूल उद्देश्य है — भगवान को पवित्र हृदय से अर्पण।

आप भी अपने घर में रोज़ ऐसा करते हैं?

तो निःसंकोच यह कार्य जारी रखें — और भगवान को उसी प्रेम से भोग अर्पित करें जैसा आप कर रहे हैं।

नवरात्रि में व्रत धारण करने वाले को भोजन करना चाहिए या नहीं ? 

प्रिय पाठकों, क्या आपको यह पोस्ट पसंद आई? आशा करते हैं कि आपको पोस्ट पसंद आई होगी। अपनी राय हमें कमेंट में बताएं! ऐसी ही रोचक जानकारियों के साथ विश्वज्ञान मे फिर से मुलाकात होगी। तब तक के लिए आप हंसते रहें, खुश रहें और औरों को भी खुशियाँ बांटते रहें। 

धन्यवाद 

हर हर महादेव!

Previous Post Next Post