मौत से कौन डरता है?
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मौत के पार भी जीवन है। |
मौत
मौत... एक ऐसा शब्द जिसे सुनते ही मन सिहर उठता है। लेकिन क्या मौत से डरना वाकई जरूरी है?
क्या मौत सच में अंत है? या एक नई शुरुआत?
मौत से कौन डरता है?
मौत से वही डरता है —
जिसने अभी तक जीना शुरू ही नहीं किया,
जिसे लगता है कि ज़िंदगी अभी अधूरी है,
जिसने मोह-माया को ही सब कुछ मान लिया है,
जो सोचता है कि शरीर ही सब कुछ है।
लेकिन,
जो आत्मा को पहचान गया,
जो जानता है कि यह जीवन एक पाठशाला है,
और मौत एक छुट्टी का दिन —
वो कभी नहीं डरता।
गीता का अमर संदेश।
भगवद गीता में भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं:
न जायते म्रियते वा कदाचिन् नायं भूत्वा भविता वा न भूयः।
अजो नित्यः शाश्वतोऽयं पुराणो न हन्यते हन्यमाने शरीरे॥
आत्मा न कभी जन्म लेती है, न मरती है। वह नित्य है, सनातन है। शरीर नष्ट हो सकता है, आत्मा नहीं।
जब शरीर बदलने को कपड़े बदलना माना जाए,
तो क्या कपड़े उतरने से डरना चाहिए?
जो मौत को समझ गया, वह जीवन को पा गया।
मौत कोई अंत नहीं, एक पड़ाव है।
जैसे रात के बाद सुबह आती है,
वैसे ही मृत्यु के बाद एक नया जीवन आता है।
यह जीवन ईश्वर की प्रयोगशाला है,
जहाँ हम आत्मा को छोड़कर,
अपने असली घर ईश्वर की ओर लौटते हैं।
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मौत से नहीं, अधूरे जीवन से डरना चाहिए।
मौत से डरने की बजाय
हमें इस बात से डरना चाहिए कि —
कहीं हमने किसी को माफ़ नहीं किया,
कहीं हमने खुद को ही नहीं अपनाया,
कहीं हम प्रेम देना भूल गए,
और कहीं हम ईश्वर को याद करना टालते रहे।
अंत में एक सरल सत्य।
मौत एक सत्य है, लेकिन डर नहीं।
डर तब होता है जब हम जीते ही नहीं।
जब जीवन को प्रेम, सेवा और भक्ति से जीते हैं —
तो मौत एक मिलन बन जाती है।
ईश्वर से, खुद से, और शांति से।
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FAQs
1. हमें मरने से डर क्यों लगता है?
क्योंकि मृत्यु अज्ञात है। हम नहीं जानते मरने के बाद क्या होगा—अंधकार, पुनर्जन्म, स्वर्ग-नरक या शून्यता। यह अनजाना डर, आत्मा का शरीर छोड़ना, और अपनों को छोड़ने का भाव ही डर को जन्म देता है।
2. मौत से सबको डर क्यों लगता है?
क्योंकि हम जीवन से जुड़े होते हैं—परिवार, इच्छाएं, पहचान, और शरीर से। जब यह सब छूटने वाला होता है, तो स्वाभाविक रूप से डर लगता है। साथ ही, समाज में मृत्यु को नकारात्मक रूप से देखा जाता है।
3. मौत का डर कैसे निकाले?
- ध्यान और योग करें
- आत्मा की अमरता पर विश्वास रखें
- धार्मिक ग्रंथ पढ़ें जैसे भगवद्गीता
- मृत्यु को जीवन का स्वाभाविक भाग मानें
- अच्छे कर्म करते रहें, जिससे मन शांत रहेगा
4. क्या मौत से न डरना नॉर्मल है?
हाँ। कुछ लोग आध्यात्मिक रूप से जागरूक होते हैं, और उन्हें मृत्यु से डर नहीं लगता। वे इसे आत्मा की यात्रा का हिस्सा मानते हैं। यह कोई असामान्य बात नहीं है।
5. मौत का डर कहां से आता है?
यह डर हमारी चेतना और अहं से आता है, जो शरीर को ही सब कुछ मानती है। जैसे ही हम आत्मा को पहचानने लगते हैं, यह डर कम हो जाता है।
6. मरते समय दर्द होता है क्या?
कुछ मामलों में होता है, खासकर बीमारी या दुर्घटना में। लेकिन अंतिम क्षणों में शरीर और आत्मा का अलगाव होने लगता है, तब शरीर का एहसास कम हो जाता है और दर्द कम या खत्म हो सकता है।
7. मृत्यु से पहले क्या दिखाई देता है?
कई लोगों ने बताया है कि उन्हें रोशनी, दिव्य आकृतियाँ, अपने पूर्वज, या पूरा जीवन चलचित्र की तरह दिखाई देता है। यह अनुभव व्यक्ति के विश्वास, मन की स्थिति, और कर्मों पर निर्भर करता है।
8. क्या मौत का डर डिप्रेशन है?
हर बार नहीं। मौत का डर सामान्य है, लेकिन अगर यह डर आपकी दिनचर्या, नींद या मानसिक स्थिति को बिगाड़ रहा है, तो यह डिप्रेशन या एंग्जायटी का लक्षण हो सकता है।
9. मृत्यु का भय मिटाने वाली मुद्रा कौन सी है?
अभय मुद्रा (हथेली सामने की ओर ऊपर उठी हुई) को भय से मुक्ति की मुद्रा माना जाता है। योग में शवासन भी मृत्यु की तैयारी में सहायक है।
10. मौत से कौन नहीं डरता?
- संत-महात्मा
- ध्यान करने वाले योगी
- भगवान में पूर्ण आस्था रखने वाले
- वह व्यक्ति जिसने जीवन का सच्चा उद्देश्य समझ लिया हो
11. मौत का दूसरा नाम क्या है?
मृत्यु के अन्य नाम हैं:
- अंत
- प्राण त्याग
- काल
- महाप्रयाण
- देह त्याग
12. मृत्यु को कौन टाल सकता है?
कोई भी मृत्यु को स्थायी रूप से टाल नहीं सकता। लेकिन कुछ ऋषि-मुनियों ने तप से इसे स्थगित किया। महाभारत में यमराज भी कहते हैं कि केवल भगवान ही मृत्यु से परे हैं।
13. मृत्यु के 4 प्रकार कौन से हैं?
गरुड़ पुराण और अन्य ग्रंथों के अनुसार मृत्यु के प्रकार हैं-
1. काल मृत्यु – समय पूरा होने पर स्वाभाविक मृत्यु
2. अकाल मृत्यु – समय से पहले, दुर्घटना या हिंसा से
3. प्रारब्ध मृत्यु – जन्म के साथ ही तय हुई मृत्यु
4. योग मृत्यु – ध्यान के माध्यम से स्वयं शरीर त्यागना (योगियों द्वारा)
14. मौत के भगवान को क्या कहते हैं?
15. विज्ञान के अनुसार मृत्यु क्या है?
- शरीर में रक्त प्रवाह रुक जाता है।
- ऑक्सीजन मस्तिष्क तक नहीं पहुंचती।
- कोशिकाएं मरने लगती हैं।
- कोई चेतना नहीं बचती।