भागवत पुराण में राधा जी का सीधा उल्लेख क्यों नहीं मिलता?
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राधा नाम नहीं, प्रेम का अनुभव है। भागवत के हर श्लोक में छुपा राधा का संकेत। |
कैसे है आप लोग, आशा करते हैं कि प्रभु की कृपा से आप स्वस्थ होंगे, प्रसन्नचित्त होंगे।
मित्रों! जब भी कोई श्रीकृष्ण का नाम लेता है, तो उसके हृदय में अपने आप एक और नाम गूंजता है -
राधा।
श्रीराधा रानी और श्रीकृष्ण, ये दोनों नाम अलग-अलग नहीं हैं।
राधा जी को श्रीकृष्ण की आत्मा कहा जाता है, उनकी स्वरूप शक्ति कहा जाता है।
लेकिन जब हम भागवत पुराण खोलते हैं,
जो भगवान श्रीकृष्ण की लीलाओं का सबसे अद्भुत ग्रंथ है,
तो हमें राधा रानी का नाम सीधे शब्दों में बहुत कम या लगभग न के बराबर मिलता है।
तो आखिर ऐसा क्यों है? क्यों राधा रानी का नाम सीधे शब्दों में भागवत पुराण में नहीं मिलता। आइए इस प्रश्न को आस्था, तत्त्वज्ञान और भावनाओं के साथ समझते हैं - ताकि राधा-कृष्ण के इस रहस्य को पढ़ते-पढ़ते आपका मन भी- उनके प्रेम में डूब जाए।
आइए सबसे पहले जाने भागवत पुराण का उद्देश्य क्या था।
1. भागवत पुराण का उद्देश्य क्या है?
भागवत पुराण, जिसे श्रीमद्भागवतम कहते हैं,
वेदव्यास जी द्वारा रचा गया अद्वितीय ग्रंथ है।
इसका मुख्य उद्देश्य केवल कथा कहना नहीं था,
बल्कि संसार को ‘प्रीति-मार्ग’ दिखाना था -
भक्ति का वो उच्चतम स्वरूप, जिसमें जीव अपनी अहंता छोड़कर
परमात्मा में विलीन हो जाए।
भागवत कहती है
‘स वै पुण्यश्लोक कथा कथायाम्’
(जो श्रीकृष्ण की कथाओं में डूबता है, वही पुण्यश्लोक होता है।)
यह ग्रंथ गोपियों के प्रेम को भक्ति की सबसे ऊँची मिसाल मानता है।
राधा जी उसी प्रेम की परम मूर्ति हैं।
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2. राधा केवल नाम नहीं, तत्त्व हैं
राधा जी कोई साधारण गोपी नहीं हैं।
राधा स्वयं श्रीकृष्ण की आनंदिनी शक्ति हैं -
अर्थात् वह शक्ति जो श्रीकृष्ण के आनंद को और प्रकट करती हैं।
वे श्रीकृष्ण से अलग नहीं हैं, जैसे अग्नि और उसकी ज्वाला अलग नहीं होते।
संस्कृत में कहते हैं
‘राधा कृष्ण प्राणकृष्ण राधा’
अर्थात राधा श्रीकृष्ण की प्राण हैं।
3. तो फिर भागवत में राधा जी का नाम क्यों छुपा है?
अब यह बड़ा सवाल है।
इसके कई कारण बताए जाते हैं -
(1) राधा का प्रेम गोपनीय है
राधा-कृष्ण का प्रेम केवल कथा नहीं -
यह परम गोपनीय रहस्य है।
इसे हर कोई सुन तो सकता है, पर इसे हृदय में अनुभव वही कर सकता है,
जिसके भीतर निष्कलंक भक्ति है।
ऋषि वेदव्यास ने भागवत में राधा नाम को संकेतों में छुपाया।
जैसे चाँद बादलों में छिपा हो,
पर उसकी चाँदनी सबको दिखती है।
(2) समय और समाज की दृष्टि
भागवत पुराण उस काल में लिखा गया था,
जब भक्ति का स्तर अभी समाज में विकसित हो रहा था।
राधा तत्त्व को प्रकट करने के लिए साधक को
एक विशिष्ट मानसिक अवस्था चाहिए -
वरना वह इस प्रेम को भी सांसारिक दृष्टि से देख लेगा।
(3) संकेतों से ही राधा प्रकट होती हैं
भागवत के श्लोकों में कई जगह राधा जी का तत्त्व संकेतों में आता है।
उदाहरण देखें
आनया राधितो नूनं भगवाञ्शक्य ईश्वरः।
यद्गेहं त्यक्त्वा गतोऽनाथः सा नूनं तद्गतः॥
श्रीमद्भागवत 10.30.28
भावार्थ
गोपियाँ आपस में कह रही हैं -
जिस गोपी ने श्रीकृष्ण को सबसे अधिक रिझाया, वही उनके साथ अकेले चली गई।
यहाँ ‘राधितो’ शब्द से ही ‘राधा’ शब्द निकलता है -
अर्थात् जो राधन करे - राधा।
4. रास पंचाध्यायी - राधा जी का ह्रदय
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भागवत के दशम स्कंध में अध्याय 29 से 33 तक
रासलीला का वर्णन है।
इसे ‘रास पंचाध्यायी’ कहते हैं।
यह पाँच अध्याय भागवत का ह्रदय माने जाते हैं।
यहाँ गोपियों के संग रास करते हुए श्रीकृष्ण
एक क्षण में सब गोपियों को छोड़कर
केवल एक विशेष गोपी के साथ चले जाते हैं।
क्या आप जानना चाहेंगे कि श्री कृष्ण गोपियों को छोड़कर कहाँ चले गए और क्यों चले गए तो अवश्य पढ़े- गोपियों का अद्भुत प्रेम
वह गोपी कौन?
वही — श्रीराधा रानी!
पर नाम? संकेत मात्र।
यह रहस्य बताता है -
राधा नाम केवल जुबान से नहीं,
श्रद्धा और प्रेम से जाना जाता है।
5. संतों ने कैसे प्रकट किया राधा तत्त्व
भागवत के बाद संत कवियों ने राधा तत्त्व को
खुलकर गाया और जगत को बताया कि
राधा के बिना कृष्ण अधूरे हैं।
जयदेव गोस्वामी ने गीत गोविंद में राधा-कृष्ण प्रेम को विस्तार से गाया।
विद्यापति, रसखान, मीराबाई, चैतन्य महाप्रभु -
सबने राधा को भक्ति का शिखर माना।
चैतन्य महाप्रभु ने तो कहा
राधा भावयुक्त कृष्ण यानी श्रीकृष्ण स्वयं राधा भाव में प्रकट होते हैं।
6. आधुनिक संदर्भ से समझें
आज भी जब भक्त ‘राधे कृष्णा’ कहता हैं तो-
वह केवल नाम नहीं बोलता बल्कि वह एकत्व बोलता है यानी
कृष्ण बिना राधा नहीं और राधा बिना कृष्ण नहीं।
राधा-कृष्ण का प्रेम हमें सिखाता है कि
सच्चा प्रेम त्याग मांगता है, निःस्वार्थ भक्ति मांगता है।
7. भागवत का रहस्य
भागवत पुराण संकेतों में कहता है -
‘सत्यं शिवं सुंदरम्’।
सत्य है कृष्ण, सुंदर हैं राधा।
कृष्ण की सुंदरता राधा हैं -
और राधा का अस्तित्व कृष्ण हैं।
8. क्या इसका अर्थ यह है कि राधा का नाम नहीं तो महिमा भी नहीं?
बिलकुल नहीं!
नाम भले श्लोक में न हो,
पर उनकी माधुर्य लीला,
गोपियों में उनकी प्रधानता,
कृष्ण के प्रेम में उनका अनन्य स्थान -
ये सब भागवत की हर कथा में है।
9. सरल शब्दों में उत्तर
राधा जी श्रीकृष्ण की आत्मा हैं।
भागवत पुराण में उनका नाम गोपनीय रखा गया,
ताकि भक्त खुद प्रेम से उन्हें पाए।
आनया राधितो नूनं’ जैसे श्लोक साफ संकेत देते हैं -
राधा तत्त्व वही है जो कृष्ण को बाँधता है।
10. संत वाणी में सार
राधा नाम जपे जो कोई,
कृष्ण कृपा उसकी होई।
नाम न दिखे श्लोकों में चाहे,
राधा तो अंतर में समाई।
11. भजन की छोटी पंक्तियाँ
राधे राधे जपो चले आएंगे बिहारी,
राधे राधे जपो चले आएंगे बिहारी।
12. पाठक से संदेश
प्रिय पाठकों,
राधा जी का नाम हमें हर कदम पर याद दिलाता है कि
भगवान से जुड़ने के लिए शास्त्र ही नहीं,
निश्छल प्रेम चाहिए।
भागवत में राधा जी को संकेतों में छुपाकर रखा गया-
ताकि हम बाहर पढ़ने के बाद भीतर झाँकें!
जानिए कैसा था कृष्ण के प्रति गोपियों का वियोग
मित्रों!-
भागवत में राधा छुपी नहीं,
राधा तो भागवत के कण-कण में बसी हैं।
तो प्रिय पाठकों, कैसी लगी आपको पोस्ट ,हम आशा करते हैं कि आपकों पोस्ट पसंद आयी होगी। इसी के साथ विदा लेते हैं अगली रोचक, ज्ञानवर्धक जानकारी के साथ विश्वज्ञान मे फिर से मुलाकात होगी ,तब तक के लिय आप अपना ख्याल रखे, हंसते रहिए, मुस्कराते रहिए और औरों को भी खुशियाँ बांटते रहिए।
धन्यवाद!
हर हर महादेव 🙏🙏जय श्री राधेश्याम