अलौकिक शिव : वो जो हर कण में बसते हैं
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चित्र में भगवान शिव का अलौकिक स्वरूप: शिवलिंग, नटराज और गंगा अवतरण – सावन सोमवार के पावन अवसर पर। |
हर हर महादेव प्रिय पाठकों,
कैसे हैं आप सभी? आशा है कि शिवशंकर की कृपा से आप स्वस्थ, प्रसन्न और कष्टमुक्त होंगे।
आज की इस विशेष पोस्ट में हम सिर्फ शिव की पूजा-विधि या उनके स्वरूप की बात ही नहीं करेंगे ,ब्लकि-
आज हम जानेंगे शिव के उन अलौकिक रहस्य, शक्ति और चमत्कारों को भी जो हमारे जीवन, ब्रह्मांड और आत्मा से सीधे जुड़े हैं।
यह लेख आपके दिल और चेतना को निश्चित ही शिवमय कर देगा - ऐसा मेरा विश्वास है।
कौन हैं शिव?
कहते हैं शिव का अर्थ ही है - कल्याण, मंगल और अस्तित्व से परे।
वो अदृश्य हैं, फिर भी हर जगह विद्यमान हैं।
वो निराकार हैं, फिर भी निराकार में भी साकार की झलक देते हैं।
वो नृत्य करते हैं तो संहार होता है, लेकिन उनके संहार में भी सृष्टि छुपी है।
शिव कोई व्यक्ति नहीं, कोई देवी-देवता नहीं - वो तत्व हैं, वो ऊर्जा हैं, वो अनंत चेतना हैं।
कहा भी गया है-
“त्वमेव माता च पिता त्वमेव।
त्वमेव बन्धुश्च सखा त्वमेव।
त्वमेव विद्या द्रविणं त्वमेव।
त्वमेव सर्वं मम देव देव॥”
क्यों कहते हैं ‘भोलेनाथ’?
कभी आपने सोचा - भगवान शिव को ही ‘भोलेनाथ’ क्यों कहा जाता है?
क्योंकि वो सच्चे अर्थों में ‘भोलेनाथ ’ हैं। क्योंकि वो सबसे जल्दी प्रसन्न होने वाले भगवान हैं। वो अपने भक्त की भावना पर रीझ जाते हैं।
उन्हें सोने-चाँदी के महल नहीं चाहिए।
उन्हें चाहिए - एक लोटा जल, बेलपत्र और सच्चा मन।
भक्तों के असंख्य किस्से शिव की सरलता को दर्शाते हैं।
एक बार की कथा है
एक शिकारी जंगल में भटक गया। भूखा-प्यासा शिकारी एक पेड़ पर चढ़ गया, ताकि जंगली जानवरों से बच सके।
उस पेड़ के नीचे शिवलिंग था। शिकारी को पता भी नहीं था कि वह बेल के पत्ते तोड़कर गिरा रहा है। लेकिन रातभर बेलपत्र शिवलिंग पर गिरते रहे।
उस अनजाने भक्त की अज्ञात पूजा से ही शिकारी को मोक्ष मिल गया।
यही हैं हमारे भोलेनाथ!
पढ़िए भगवान और भक्त की सच्ची कहानी
शिव के अलौकिक रूप
भगवान शिव के कई रूप हैं। हर रूप में कोई न कोई रहस्य छुपा है।
आइए जानते हैं कुछ अद्भुत रूपों के बारे में -
अर्धनारीश्वर
आधी शक्ति पार्वती और आधे शिव!
यह रूप दर्शाता है कि इस सृष्टि में स्त्री और पुरुष, दोनों मिलकर ही पूर्णता को प्राप्त होते हैं।
नटराज
नटराज रूप में शिव तांडव करते हैं। उनका तांडव विनाश का प्रतीक नहीं, बल्कि नवनिर्माण का संकेत है।
इस नृत्य से चेतना जागृत होती है, जड़ता टूटती है और सृष्टि का चक्र चलता रहता है।
भैरव
भैरव रूप उनके उग्र स्वरूप का प्रतीक है। जब अधर्म बढ़ता है, तब शिव भैरव बनकर पापियों का नाश करते हैं।
पशुपतिनाथ
‘पशु’ का अर्थ है - बंधन में बँधा हुआ जीव। शिव पशुपतिनाथ हैं, यानी जीवात्माओं के स्वामी जो उन्हें बंधन से मुक्त करते हैं।
शिवलिंग : विज्ञान और रहस्य
कई लोग शिवलिंग को लेकर गलतफहमी पाल लेते हैं।
दरअसल, शिवलिंग कोई ‘वस्तु’ नहीं, बल्कि ऊर्जा का प्रतीक है।
विज्ञान भी कहता है कि पूरी सृष्टि एक गोलाकार ऊर्जा क्षेत्र में कंपन कर रही है। शिवलिंग उसी ऊर्जा का केंद्र है।
शिवलिंग के चारों तरफ जल क्यों चढ़ाया जाता है?
क्योंकि यह ऊर्जावान होता है - इससे निकलने वाली कंपन शरीर और मन को सकारात्मक ऊर्जा देते हैं।
शिव के चमत्कार : कुछ अद्भुत कथाएँ
गंगा को जटाओं में रोकना
जब धरती पर गंगा अवतरित हुईं, तो उनका वेग इतना तीव्र था कि सबकुछ बह जाने का भय था।
तब शिव ने अपनी जटाओं में गंगा को धारण कर लिया ताकि वह शांत होकर बह सके।
यह दर्शाता है कि शक्ति का नियंत्रण आवश्यक है, सिर्फ शक्ति होना काफी नहीं।
नीलकंठ क्यों बने?
समुद्र मंथन से जब हलाहल विष निकला तो देवता और असुर दोनों ही विचलित हो गए।
विष इतना घातक था कि पूरी सृष्टि नष्ट हो सकती थी।
तब शिव ने उसे अपने कंठ में धारण कर लिया।
विष उनके कंठ तक ही सीमित रहा और वह नीलकंठ कहलाए।
यह सिखाता है - दूसरों के कष्टों को अपने अंदर रोक लेना ही सच्ची करुणा है।
काल भैरव का रूप
कभी काशी नगरी में ब्रह्महत्या का पाप बहुत बढ़ गया।
तब शिव ने काल भैरव रूप धारण कर उस पाप को हर लिया।
आज भी काशी में बिना काल भैरव की अनुमति के कोई शिव दर्शन नहीं कर सकता।
जानिए शिवरात्रि में मंत्र सिद्धि: क्या कोई भी मंत्र सिद्ध कर सकता है?
शिव को क्यों प्रिय हैं बेलपत्र, धतूरा और भांग?
भगवान शिव को बेलपत्र अर्पित करने के पीछे एक वैज्ञानिक रहस्य भी है।
बेलपत्र का रस शरीर में गर्मी को शांत करता है।
चूँकि शिव अग्नि तत्व को नियंत्रित करते हैं, इसलिए यह पत्ते उन्हें अर्पित किए जाते हैं।
धतूरा और भांग विषैले माने जाते हैं - शिव इन्हें स्वीकार करते हैं क्योंकि वह हर विष को अमृत में बदलने की शक्ति रखते हैं।
यह हमें सिखाता है कि हम अपनी बुरी आदतों को भी साधना के जरिए अच्छाई में बदल सकते हैं।
महाशिवरात्रि और सावन : शिवभक्ति के विशेष दिन
महाशिवरात्रि को शिव और शक्ति का मिलन माना जाता है।
यह वो रात है जब ऊर्जा का प्रवाह अपने चरम पर होता है।
कहा जाता है, इस रात को जागरण करने से जीवन में शक्ति, ध्यान और भक्ति का समन्वय होता है।
वहीं सावन माह शिव का सबसे प्रिय है।
क्योंकि इस समय प्रकृति भी शिवमय हो जाती है।
पेड़-पौधे, नदियाँ, वर्षा - सब मिलकर धरती को हरित और पवित्र बनाते हैं।
काँवड़ यात्रा इसी भावना का प्रतीक है - अपने सिर पर गंगाजल लाना और भोलेनाथ को अर्पित करना।
जानिए महाशिवरात्रि से जुड़े 60 महत्वपूर्ण प्रश्न और उत्तर – सम्पूर्ण जानकारी
शिव के साथ कैसे जुड़ें?
जप करें - ‘ॐ नमः शिवाय’
इस पंचाक्षरी मंत्र में अनंत शक्ति छुपी है।
इसका जाप शरीर, मन और आत्मा को शुद्ध करता है।
ध्यान करें
सोचिए - शिव कोई मूर्ति नहीं, वो ऊर्जा हैं।
आप जब आँखें बंद कर शिव को याद करते हैं तो वो आपके भीतर के अंधकार को भी प्रकाश में बदलते हैं।
भक्ति करें, लेकिन सरल रहें
भोलेनाथ को भव्यता नहीं चाहिए।
उन्हें आपका भोलापन चाहिए।
दान करें
गरीबों को भोजन कराएँ, जल पिलाएँ - यह भी शिव की सच्ची पूजा है।
एक छोटी सी प्रार्थना
“हे महादेव!
मेरी बुद्धि को शांत रखो,
मेरी आत्मा को निर्भय करो,
और मेरे जीवन को आपके प्रकाश से भर दो।
हर जन्म में बस यही वरदान देना -
कि मैं आपके चरणों से कभी दूर न होऊँ।”
इसलिए शिवत्व को अपने भीतर जगाइए
शिव सिर्फ पूजने की वस्तु नहीं हैं अपितु वो जीने की शैली हैं।
जब आप मोह, अहंकार और बंधनों से ऊपर उठते हैं, तब आप शिवमय हो जाते हैं।
कहते हैं -
“शिवो भूत्वा शिवं यजेत्” यानी
पहले खुद शिव बनो, फिर शिव की पूजा करो।
प्रिय पाठकों!
आपका यह जीवन तभी सफल होगा जब आप शिव की तरह सरल, गहरे और निर्भय होंगे।
आइए, इस लेख को पढ़ने के बाद एक बार जोर से कहिए -
हर हर महादेव! 🙏
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