जब सूर्य और चन्द्रमा एक साथ साक्षी बनें – संध्या की मौन गवाही में छिपा आध्यात्मिक सत्य

जब सूर्य और चन्द्रमा एक साथ साक्षी बनें- संध्या की मौन गवाही में छिपा आध्यात्मिक सत्य

हर हर महादेव प्रिय पाठकों, कैसे हैं आप लोग, हम आशा करते हैं कि आप ठीक होंगे।

मित्रों! क्या आपने कभी संध्या के उस अद्भुत क्षण को महसूस किया है जब सूर्य अस्त हो रहा होता है और चन्द्रमा धीरे-धीरे आकाश में प्रकट हो रहा होता है?

यह समय केवल दिन और रात के मिलने का नहीं, बल्कि कर्मों की गवाही का होता है।

हिंदू शास्त्रों में कहा गया है कि सूर्य और चन्द्रमा हमारे हर कर्म के साक्षी होते हैं – चाहे वह दिन में किया गया हो या रात के अंधेरे में।

इस लेख में हम उस अदृश्य मौन गवाही को समझेंगे जो संध्या काल में ब्रह्मांड हमारे सामने रखता है।

जहाँ एक ओर साधक ध्यानस्थ होता है, वहीं दूसरी ओर सूर्य और चन्द्र बिना बोले सब कुछ देख रहे होते हैं, साक्षी बनकर।

यह एक ऐसा रहस्य है जो केवल देखने से नहीं, अनुभव से जाना जा सकता है।

संध्या काल में सूर्य और चन्द्र एक साथ आकाश में, नदी किनारे ध्यानस्थ साधु को साक्षी भाव से निहारते हुए
संध्या काल में सूर्य और चन्द्रमा दोनों एक साथ आकाश में, ध्यानस्थ साधु के कर्मों के साक्षी बनते हुए - एक आध्यात्मिक चित्रण।

इस लेख में हम जानेंगे कि:

सूर्य और चन्द्र साक्षी क्यों कहलाते हैं?

वे कब एक साथ गवाही देते हैं?

संध्या का क्या महत्व है?

यह गवाही हमारे जीवन में कैसे प्रभाव डालती है?

सूर्य और चन्द्र साक्षी क्यों हैं?

शास्त्रों में कहा गया है:

"सूर्यश्च मे साक्षी, चन्द्रश्च मे साक्षी।"– अथर्ववेद

इसका अर्थ है कि सूर्य और चन्द्र हमारे कर्मों के गवाह हैं।

हम भले ही अपने कार्यों को गुप्त समझें, पर ये ब्रह्मांडीय शक्तियाँ हर क्षण सब देख रही होती हैं।

सूर्य साक्षी है क्योंकि:

वह दिन के समय में सबको प्रकाश देता है।

सूर्य आत्मा का प्रतीक है – वह सत्य, धर्म और चेतना का प्रतिनिधि है।

वह बाहरी कर्मों को देखता है यानी जो हम दुनिया को दिखाते हैं।

चन्द्र साक्षी है क्योंकि:

वह रात्रि का अधिपति है, और गुप्त भावनाओं, कल्पनाओं, विचारों का गवाह है।

वह मन का स्वामी है – हमारे भीतर क्या चल रहा है, वह जानता है।

चन्द्रमा अदृश्य कर्मों का साक्षी होता है – जैसे कि इरादे, इच्छाएं, कल्पनाएं।

संध्या काल - जब दोनों साक्षी साथ होते हैं

संध्या का अर्थ ही होता है- दो अवस्थाओं का मिलन।

प्रातः संध्या: रात और दिन का मिलन

सायं संध्या: दिन और रात का मिलन

इन्हीं संध्या कालों में सूर्य और चन्द्र एक साथ आकाश में दिखते हैं।

इन क्षणों में:

सूर्य अस्त हो रहा होता है,

चन्द्रमा उदय हो रहा होता है।

यह वह क्षण होता है जब दोनों ग्रह एक साथ साक्षी भाव में होते हैं,

और इसलिए इन क्षणों को "गहरी आत्मिक जागरूकता का समय" माना गया है।

शास्त्रों में साक्षी भाव का महत्व

"साक्षी चापि मम स्थाने" 

अर्थात् भगवान स्वयं को भी साक्षी के रूप में प्रस्तुत करते हैं

इसका तात्पर्य है -

ईश्वर, सूर्य, चन्द्र और ब्रह्मांड की चेतना – सब हमारे कार्यों को देख रही है, बिना किसी पक्षपात के।

संध्या की पूजा और साधना क्यों फलदायी मानी गई है?

संध्या वंदनम्: हिंदू परंपरा में ब्राह्मण और साधकों के लिए यह अनिवार्य कर्म है।

इस समय जब सूर्य और चन्द्र दोनों उपस्थित होते हैं, कर्मों की गूंज ब्रह्मांड तक पहुँचती है।

यह समय मन और आत्मा को शुद्ध करने, प्रायश्चित्त करने और परमात्मा से जुड़ने का उत्तम अवसर है।

साक्षी भाव हमें क्या सिखाता है?

1. जवाबदेही (Accountability)

जब हमें यह स्मरण रहता है कि कोई देख रहा है, तो हम सावधानी से कर्म करते हैं।

2. अहंकार का विघटन

हम जो भी करें, यह सोचकर करें कि हम नहीं, ब्रह्मांड देख रहा है। यह अहंकार को समाप्त करता है।

3. मन की शुद्धता

यदि मन में ही साक्षी भाव जगा लें, तो न तो पाप जन्म लेता है, न भ्रम।

खगोलीय सत्य और खगोल विज्ञान की पुष्टि

खगोल विज्ञान भी इस तथ्य की पुष्टि करता है कि कई बार सूर्य और चन्द्र अमावस्या और पूर्णिमा के दिन एक साथ दिखाई देते हैं। क्योंकि-

अमावस्या के दिन: दोनों एक ही राशि में होते हैं

पूर्णिमा के दिन: दोनों विपरीत राशि में होते हैं

प्रातः या सायं संध्या में: यदि आकाश साफ हो, तो दोनों एक साथ क्षितिज पर दिख सकते हैं

यह केवल संयोग नहीं, एक ब्रह्मांडीय योग है - चेतना और जागरूकता को जगा देने वाला।

जानिए- क्या अमावस्या और संक्रांति का एक साथ होना अशुभ है? 

जीवन के लिए प्रेरणा

जब हम अपने जीवन में यह भाव रखेंगे कि –

"मैं अकेला नहीं हूँ, मेरे हर विचार, हर कर्म का गवाह यह ब्रह्मांड है..."

तब हम-

  • झूठ से दूर रहेंगे,
  • पवित्र कर्म करेंगे,
  • और अंततः आत्मिक उन्नति की ओर बढ़ेंगे।

संक्षेप में उत्तर 

सूर्य और चन्द्रमा केवल ग्रह नहीं हैं, वे जीवात्मा के दर्पण हैं।

वे हमारे हर कार्य को, चाहे वह दिन का हो या रात्रि का, मौन रहकर गवाही देते हैं।

संध्या काल वह विशेष क्षण होता है, जब दोनों मिलकर ब्रह्मांडीय गवाही देते हैं –

सत्य, धर्म और आत्म-जागृति की।

जानिए क्या है चान्द्रायण व्रत: क्या यह केवल एक पाप का नाश करता है या संपूर्ण पापों का?

सुविचार 

अपने हर कर्म को ऐसे करो, जैसे सूर्य और चन्द्र तुम्हारे सामने खड़े होकर उसे देख रहे हों।

यह भाव ही सच्चा धर्म है।

तो प्रिय पाठकों, आशा करते हैं कि आपको पोस्ट पसंद आई होगी। ऐसी ही रोचक जानकारियों के साथ विश्वज्ञान मे फिर से मुलाकात होगी, तब तक के लिए आप अपना ख्याल रखें, हंसते रहिए,मुस्कराते रहिए और औरों को भी खुशियाँ बांटते रहिए। 

धन्यवाद, हर हर महादेव

लेखक – My Vishvagyaan Team

ब्लॉग: myvishvagyaan

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