महा भरणी श्राद्ध तथा मघा श्राद्ध -पौराणिक महत्व और तिथियों का विस्तार
जय श्री कृष्ण प्रिय पाठकों, कैसे हैं आप? आशा करते हैं आप स्वस्थ और प्रसन्नचित्त होंगे।
श्राद्ध पक्ष (पितृपक्ष) का समय हमारे सनातन धर्म में अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है। इस दौरान हम अपने पितरों (पूर्वजों) के प्रति श्रद्धा, कृतज्ञता और कर्तव्यभाव प्रकट करते हैं। आमतौर पर हम अमावस्या को पितृ तर्पण या श्राद्ध करते हैं, लेकिन इस पितृपक्ष में कुछ विशेष तिथियां होती हैं, जिनका अपना अलग महत्त्व है।
इन्हीं में से दो हैं – महा भरणी श्राद्ध और मघा श्राद्ध। ये दोनों ही श्राद्ध पितरों की विशेष तृप्ति और आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए किए जाते हैं।
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महा भरणी और मघा श्राद्ध – पितृपक्ष की दो अत्यंत शुभ तिथियाँ, जिनमें पितरों को तर्पण करने का विशेष महत्व है। |
1. महा भरणी श्राद्ध क्या है?
भरणी नक्षत्र का महत्व
भरणी 27 नक्षत्रों में दूसरा नक्षत्र है, जिसका स्वामी शुक्र और अधिदेवता यमराज माने गए हैं। यमराज पितरों के देवता हैं, जो मृत्यु के बाद जीवात्मा को यथोचित लोक में पहुंचाने का कार्य करते हैं। इस कारण पितृपक्ष में जब भरणी नक्षत्र आता है, तो यह विशेष श्राद्ध का दिन माना जाता है।
‘महा भरणी’ क्यों कहा जाता है?
पितृपक्ष में जब भरणी नक्षत्र पड़ता है, विशेषकर यदि वह चतुर्दशी या अमावस्या के समीप हो, तो इसे “महा भरणी” कहा जाता है। इस दिन श्राद्ध करने से पितरों को अपार तृप्ति मिलती है और वे अपने वंशजों को दीर्घायु, सुख-समृद्धि और संतानों का आशीर्वाद देते हैं।
पौराणिक मान्यता
गरुड़ पुराण में वर्णित है कि भरणी नक्षत्र के दिन किया गया तर्पण पितरों तक शीघ्र पहुंचता है, क्योंकि यमराज स्वयं इस दिन पितरों के आह्वान पर आते हैं।
महाभारत के अनुशासन पर्व में भी उल्लेख है कि विशेष तिथियों में श्राद्ध का फल कई गुना हो जाता है, और भरणी नक्षत्र इसका प्रमुख उदाहरण है।
2. मघा श्राद्ध क्या है?
मघा नक्षत्र का महत्व
मघा नक्षत्र के अधिदेवता "पितृ" स्वयं हैं और इसका स्वामी ग्रह केतु है। मघा नक्षत्र का अर्थ है “महान” या “श्रेष्ठ”। यह नक्षत्र राजसी और पितृ वंश से जुड़ा माना जाता है।
मघा श्राद्ध कब किया जाता है?
पितृपक्ष के दौरान जब मघा नक्षत्र पड़ता है, उस दिन मघा श्राद्ध किया जाता है। इसे विशेष रूप से पितृ-पुत्रों के संबंध को मजबूत करने वाला दिन माना जाता है।
पौराणिक मान्यता
मत्स्य पुराण के अनुसार, मघा नक्षत्र का संबंध सीधे पितृलोक से है। इस दिन किया गया श्राद्ध पितरों को तुरंत तृप्त करता है।
विष्णु धर्मसूत्र में कहा गया है कि जो व्यक्ति मघा नक्षत्र में श्राद्ध करता है, उसके कुल में कोई अकाल मृत्यु नहीं होती और संतानें सदैव धर्मशील होती हैं।
3. तिथियों के संदर्भ में तथ्यपरक जानकारी
पितृपक्ष की गणना
पितृपक्ष भाद्रपद मास की पूर्णिमा के अगले दिन से लेकर आश्विन मास की अमावस्या (सर्वपित्री अमावस्या) तक चलता है।
महा भरणी श्राद्ध की तिथि कैसे निर्धारित होती है?
इस तिथि को निर्धारित करने में नक्षत्र को प्राथमिकता दी जाती है।
पितृपक्ष में जब भरणी नक्षत्र आता है, वह महा भरणी श्राद्ध का दिन होता है।
यदि भरणी नक्षत्र दो तिथियों में फैला हो, तो तिथि और मुहूर्त के अनुसार श्रेष्ठ काल में श्राद्ध किया जाता है।
मघा श्राद्ध की तिथि कैसे निर्धारित होती है?
इसी प्रकार, मघा श्राद्ध पितृपक्ष में मघा नक्षत्र के आने पर किया जाता है।
यदि मघा नक्षत्र आंशिक रूप से किसी तिथि में आता है, तो नियम है कि नक्षत्र प्रधानता के अनुसार श्राद्ध करें।
4. पितृपक्ष में इन तिथियों का पालन क्यों ज़रूरी है?
1. पितृ कृपा – इन विशेष दिनों में किया गया श्राद्ध पितरों को अधिक संतुष्ट करता है।
2. पुण्य की वृद्धि – अन्य दिनों की तुलना में इन नक्षत्रों में पुण्य कई गुना होता है।
3. कुल की रक्षा – पितरों का आशीर्वाद परिवार को बुरे समय से बचाता है।
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5. इन दिनों श्राद्ध की विधि (संक्षेप में)
- प्रातः स्नान करके शुद्ध वस्त्र धारण करें।
- दक्षिणमुख होकर कुशा, तिल और जल से पितरों का आह्वान करें।
- पिंडदान, तर्पण और ब्राह्मण भोजन कराएं।
- संभव हो तो गौदान या अन्नदान करें।
- तिथि और नक्षत्र के अनुसार पंडित या ज्ञानी ब्राह्मण से मुहूर्त निश्चित कराएं।
6. पौराणिक कथाएं
महा भरणी श्राद्ध की कथा
कथाओं में आता है कि एक राजा ने पितृपक्ष में यज्ञ किया, पर भरणी नक्षत्र के दिन श्राद्ध नहीं किया। परिणामस्वरूप उसके पितृ नाराज़ होकर स्वप्न में प्रकट हुए और कहा कि भरणी का श्राद्ध करना ही वास्तविक तृप्ति देता है। राजा ने अगले वर्ष विधिपूर्वक महा भरणी श्राद्ध किया और उसके बाद उसके राज्य में सुख-शांति स्थापित हुई।
मघा श्राद्ध की कथा
मघा नक्षत्र के दिन श्राद्ध करने से संबंधित कथा में कहा गया है कि एक व्यापारी अपने पूर्वजों की आत्मा को दुखी देखता था। एक ऋषि ने उसे मघा नक्षत्र में श्राद्ध करने का उपाय बताया। व्यापारी ने ऐसा किया और पितृ प्रसन्न होकर उसे अपार धन-धान्य का आशीर्वाद दिया।
संक्षेप में
महा भरणी और मघा श्राद्ध दोनों ही पितृपक्ष के अत्यंत महत्वपूर्ण दिन हैं। ये केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि हमारी वंश परंपरा और पारिवारिक मूल्यों का सम्मान हैं।
जो लोग इन दिनों विधिवत श्राद्ध करते हैं, वे न केवल अपने पितरों को तृप्त करते हैं बल्कि अपने जीवन में भी सुख, शांति और समृद्धि का मार्ग प्रशस्त करते हैं।
पितृपक्ष की विशेष तिथियाँ
2025 में महा भरणी श्राद्ध और मघा श्राद्ध की तिथियाँ
पितृपक्ष (Pitru Paksha) – 2025
पितृपक्ष इस वर्ष 7 सितम्बर 2025 (रविवार) से शुरू होकर 21 सितम्बर 2025 (रविवार) को समाप्त होगी ।
यह अवधि भाद्रपद शुक्ल पूर्णिमा (पूनम) के अगले दिन से आश्विन कृष्ण अमावस्या तक चलती है ।
महा भरणी श्राद्ध (Maha Bharani Shraddha) – 2025
वर्ष 2025 में 11 सितम्बर, गुरुवार को अश्विन कृष्ण पंचमी तिथि और भरणी नक्षत्र का संयोग होता है, जिस दिन महा भरणी श्राद्ध किया जाता है ।
भरणी नक्षत्र की अवधि है:
- आरंभ: 11 सितम्बर 2025, 1:57 PM
- समाप्त: 12 सितम्बर 2025, 11:58 AM
इस दिन के मुहूर्त (संक्षेप में):
- कुतुप मुहूर्त: लगभग 11:53 AM – 12:42 PM
- रौहिण मुहूर्त: लगभग 12:42 PM – 1:32 PM
- अपराह्न काल: इसके बाद तक श्राद्ध किया जाता है ।
मघा श्राद्ध (Magha Shraddha) – 2025
मघा श्राद्ध उसी दिन होता है जब अश्विन कृष्ण त्रयोदशी तिथि के साथ मघा नक्षत्र का संयोग होता है।
वर्ष 2025 में यह 19 सितम्बर, शुक्रवार को पड़ता है — अर्थात् उस दिन अश्विन कृष्ण त्रयोदशी तिथि और मघा नक्षत्र एक साथ हैं ।
विस्तृत एवं तथ्यपरक खंड:
1. पितृपक्ष - 2025 कैलेंडर
आरंभ: 7 सितम्बर, 2025 (रविवार) — भाद्रपद शुक्ल पूर्णिमा के अगले दिन ।
समापन: 21 सितम्बर, 2025 (रविवार) — सर्वपित्री अमावस्या (आश्विन कृष्ण अमावस्या) ।
2. महा भरणी श्राद्ध की तिथि व मुहूर्त
तिथि: 11 सितम्बर 2025 (गुरुवार) — अश्विन कृष्ण पंचमी तिथि और भरणी नक्षत्र का प्रमुख दिन ।
भरणी नक्षत्र अवधि: 11 सितम्बर 1:57 PM से 12 सितम्बर 11:58 AM तक ।
मुहूर्त:
- कुतुप: 11:53 AM–12:42 PM
- रौहिण: 12:42 PM–1:32 PM
- अपराह्न काल: उक्त समय के बाद तक ।
3. मघा श्राद्ध की तिथि
19 सितम्बर 2025 (शुक्रवार) को अश्विन कृष्ण त्रयोदशी तिथि के साथ मघा नक्षत्र मौजूद है — इस दिन मघा श्राद्ध किया जाएगा ।
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FAQs
महा भरणी श्राद्ध और मघा श्राद्ध – सामान्य प्रश्नोत्तर
1. महा भरणी श्राद्ध क्या है?
महा भरणी श्राद्ध पितृपक्ष के दौरान भरणी नक्षत्र में किया जाने वाला श्राद्ध है। इसका विशेष महत्व इसलिए है क्योंकि भरणी नक्षत्र के अधिदेवता यमराज हैं, जो पितृलोक के स्वामी माने जाते हैं।
2. मघा श्राद्ध क्या है?
मघा श्राद्ध पितृपक्ष के दौरान मघा नक्षत्र में किया जाता है। मघा नक्षत्र के अधिदेवता पितृ स्वयं हैं, इसलिए यह दिन पितरों की तृप्ति के लिए अत्यंत शुभ माना जाता है।
3. 2025 में महा भरणी श्राद्ध और मघा श्राद्ध कब हैं?
- महा भरणी श्राद्ध – 11 सितम्बर 2025 (गुरुवार)
- मघा श्राद्ध – 19 सितम्बर 2025 (शुक्रवार)
4. महा भरणी और मघा श्राद्ध में कौन-सा मुहूर्त सबसे शुभ है?
पितृपक्ष में श्राद्ध के लिए कुतुप मुहूर्त, रौहिण मुहूर्त और अपराह्न काल को सबसे शुभ माना जाता है।
5. क्या इन तिथियों पर हर कोई श्राद्ध कर सकता है?
हाँ, जो लोग अपने पितरों के लिए विशेष तर्पण करना चाहते हैं, वे इन तिथियों पर श्राद्ध कर सकते हैं, चाहे पितरों की तिथि अलग हो। यह सर्वपितृ श्राद्ध की तरह विशेष पुण्य देने वाला माना जाता है।
6. क्या पितृपक्ष में सिर्फ़ अपनी ही तिथि पर श्राद्ध करना चाहिए?
नियम है कि अपनी तिथि पर करना सर्वोत्तम है, लेकिन महा भरणी और मघा श्राद्ध जैसे विशेष दिनों में भी श्राद्ध करने से विशेष फल मिलता है।
7. पितृकृपा प्राप्त करने के लिए क्या केवल पिंडदान ही आवश्यक है?
पिंडदान सबसे महत्वपूर्ण है, लेकिन अन्नदान, जलदान, वस्त्रदान और गौदान भी पितरों को प्रसन्न करते हैं।
8. क्या इन तिथियों पर श्राद्ध न करने से कोई दोष लगता है?
कोई विशेष दोष नहीं, लेकिन महा भरणी और मघा श्राद्ध जैसे अवसर चूकने से पितरों की विशेष कृपा का लाभ नहीं मिल पाता।
9. क्या महिला भी इन तिथियों पर श्राद्ध कर सकती है?
परंपरा में पुरुष श्राद्ध करते हैं, लेकिन आज के समय में कई स्थानों पर महिला सदस्य भी पितृ तर्पण करती हैं, विशेषकर जब कोई पुरुष सदस्य न हो।
10. पितरों की तृप्ति के लिए इन दिनों क्या विशेष करना चाहिए?
- विधिपूर्वक पिंडदान और तर्पण
- ब्राह्मण या जरूरतमंद को भोजन
- पितरों के नाम से दान
- घर में कलह और क्रोध से बचना
- सात्विक भोजन करना
प्रिय पाठकों, कैसी लगी आपको पोस्ट ,हम आशा करते हैं कि आपकों पोस्ट पसंद आयी होगी। इसी के साथ विदा लेते हैं अगली रोचक, ज्ञानवर्धक जानकारी के साथ विश्वज्ञान मे फिर से मुलाकात होगी ,तब तक के लिय आप अपना ख्याल रखे, हंसते रहिए, मुस्कराते रहिए और औरों को भी खुशियाँ बांटते रहिए।
धन्यवाद!
हरि ओम्। जय श्रीराम। जय श्रीकृष्ण।