पितृ पूजा: गीता और गरुड़ पुराण की दृष्टि में - क्यों आज भी लोग करते हैं?
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गीता और गरुड़ पुराण के अनुसार पितृ पूजा - परंपरा और मोक्ष का संतुलन |
परिचय
पितृ पूजा हिंदू धर्म की एक प्राचीन परंपरा है, जिसे पूर्वजों के प्रति सम्मान और कृतज्ञता के रूप में निभाया जाता है। लेकिन श्रीमद् भगवद गीता के अध्याय 9, श्लोक 25 में भगवान श्रीकृष्ण स्पष्ट कहते हैं कि पितृ पूजा से पितृलोक की प्राप्ति होती है, जबकि मोक्ष केवल भगवान की भक्ति से संभव है। गरुड़ पुराण भी यही बताता है कि पितृ तर्पण पुण्यकारी है, परंतु मुक्ति के लिए ईश्वर की आराधना अनिवार्य है। ऐसे में सवाल उठता है—लोग फिर भी पितृ पूजा क्यों करते हैं? इस लेख में हम गीता, गरुड़ पुराण, और परंपरागत मान्यताओं के आधार पर इस प्रश्न का सरल और स्पष्ट उत्तर खोजेंगे।
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मित्रों!जैसा कि हमने ऊपर बताया कि-अक्सर लोग एक सवाल पूछते हैं - गीता के अध्याय 9, श्लोक 25 में भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं कि पितृ पूजा से केवल पितृलोक मिलता है, मोक्ष नहीं। गरुड़ पुराण भी केवल भगवान की भक्ति को सर्वोच्च मानता है। फिर भी, लोग पितृ पूजा क्यों करते हैं?
इस सवाल का जवाब पाने के लिए हमें तीन बातों को समझना होगा:
1. शास्त्रीय संदर्भ - गीता और गरुड़ पुराण में पितृ पूजा के बारे में क्या कहा गया है।
2. परंपरा और सांस्कृतिक महत्व - क्यों यह आज भी की जाती है।
3. आध्यात्मिक संतुलन - क्या हमें करना चाहिए।
1. गीता का संदेश (अध्याय 9, श्लोक 25)
भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं:
"यान्ति देवव्रता देवान् पितृ़न् यान्ति पितृव्रताः।
भूतानि यान्ति भूतेज्या यान्ति मद्याजिनोऽपि माम्॥"
भावार्थ:
- जो देवताओं की पूजा करते हैं, वे देव लोक में जाते हैं।
- जो पितरों की पूजा करते हैं, वे पितृलोक में जाते हैं।
- जो भूत-प्रेत आदि की पूजा करते हैं, वे उन्हीं के लोक में जाते हैं।
- और जो मेरी भक्ति करते हैं, वे मुझे प्राप्त होते हैं।
यहाँ भगवान ने मनाही नहीं की है, बल्कि परिणाम स्पष्ट किया है —
पितृ पूजा से पितृलोक मिलता है, लेकिन मोक्ष केवल भगवान की भक्ति से मिलता है।
2. गरुड़ पुराण की दृष्टि
गरुड़ पुराण में कई स्थानों पर यह कहा गया है कि:
केवल पितृ पूजा से मुक्ति नहीं मिलती, क्योंकि यह सांसारिक ऋण और पूर्वजों की तृप्ति से जुड़ा है।
मोक्ष के लिए ईश्वर भक्ति, नाम स्मरण और धर्मपालन आवश्यक है।
फिर भी, गरुड़ पुराण में श्राद्ध और पितृ तर्पण को पुण्यकारी और आवश्यक बताया गया है, ताकि पितरों को शांति मिले और वे आशीर्वाद दें।
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3. पितृ पूजा का परंपरागत महत्व
हमारे धर्म में तीन प्रकार के ऋण बताए गए हैं:
1. देव ऋण
2. ऋषि ऋण
3. पितृ ऋण
पितृ ऋण का अर्थ है - अपने पूर्वजों के प्रति कृतज्ञता।
श्राद्ध, तर्पण, पिंडदान जैसी क्रियाएँ इसी ऋण को चुकाने के तरीके मानी जाती हैं।
महाभारत की कर्ण कथा इसका बड़ा उदाहरण है —
कर्ण ने जीवन में दान-पुण्य तो बहुत किया, लेकिन पितरों को जल अर्पण नहीं किया। मृत्यु के बाद पितृलोक में उसे भोजन नहीं मिला, केवल सोना और रत्न मिले। तब उसने यमराज से कारण पूछा, तो पता चला कि उसने अपने पितरों के लिए कभी तर्पण नहीं किया। इसीलिए, बाद में पृथ्वी पर आकर श्राद्ध किया।
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4. लोग पितृ पूजा क्यों करते हैं?
परंपरा और संस्कार: यह पीढ़ियों से चलता आ रहा है और लोग इसे अपने परिवार का कर्तव्य मानते हैं।
कृतज्ञता: पूर्वजों ने जो कुछ दिया-भूमि, घर, संस्कृति, नाम-उसके लिए धन्यवाद।
आशीर्वाद की आशा: माना जाता है कि पितर प्रसन्न होकर परिवार को सुख-समृद्धि का आशीर्वाद देते हैं।
शास्त्रीय आदेश: मनुस्मृति, महाभारत, विष्णु पुराण, गरुड़ पुराण सभी पितृ तर्पण का उल्लेख करते हैं।
सामाजिक दबाव: कई लोग यह सोचकर भी करते हैं कि न करने पर दोष या अपमान लगेगा।
5. गीता और परंपरा में संतुलन
अगर हम गीता और परंपरा दोनों को समझें तो स्पष्ट होता है:
पितृ पूजा करना गलत नहीं है - यह पूर्वजों के प्रति सम्मान और ऋण चुकाने का तरीका है।
मोक्ष के लिए भगवान की भक्ति आवश्यक है - केवल पितृ पूजा से जन्म-मृत्यु का चक्र नहीं टूटता।
आदर्श स्थिति यही है कि हम दोनों करें -पितरों का तर्पण भी और भगवान की भक्ति भी।
6. क्या करना चाहिए?
श्राद्ध और पितृ तर्पण श्रद्धा से करें, पर इसे ही अंतिम साधना न मानें।
साथ ही, रोज भगवान का स्मरण, नाम-जप, और भक्ति करें।
यह समझें कि पितृ पूजा का फल पितृलोक है, जबकि भगवान की भक्ति का फल मोक्ष है।
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निष्कर्ष
पितृ पूजा और भगवान की भक्ति दोनों का अपना महत्व है।
गीता और गरुड़ पुराण हमें यह नहीं कहते कि पितृ पूजा छोड़ दें, बल्कि यह सिखाते हैं कि परिणाम के आधार पर सही मार्ग चुनें।
पूर्वजों को सम्मान देना और भगवान की भक्ति करना — यही संतुलित मार्ग है, जो परंपरा भी निभाएगा और मोक्ष का मार्ग भी खोलेगा।
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQ)
1. गीता में पितृ पूजा के बारे में क्या कहा गया है?
श्रीमद् भगवद गीता अध्याय 9, श्लोक 25 में भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं कि पितृ पूजा करने वाले पितृलोक जाते हैं, लेकिन मोक्ष पाने के लिए भगवान की भक्ति करनी चाहिए।
2. गरुड़ पुराण में पितृ पूजा का क्या महत्व है?
गरुड़ पुराण के अनुसार पितृ तर्पण और श्राद्ध पूर्वजों को तृप्त करते हैं और उनके आशीर्वाद से परिवार को सुख-समृद्धि मिलती है, लेकिन मोक्ष के लिए ईश्वर भक्ति आवश्यक है।
3. पितृ पूजा करना सही है या गलत?
पितृ पूजा करना गलत नहीं है। यह पूर्वजों के प्रति सम्मान और कृतज्ञता व्यक्त करने का तरीका है, लेकिन इसे मोक्ष का साधन नहीं माना गया है।
4. पितृ पूजा से क्या फल मिलता है?
पितृ पूजा से पितृलोक की प्राप्ति होती है और पितर प्रसन्न होकर आशीर्वाद देते हैं। हालांकि जन्म-मृत्यु के चक्र से मुक्ति केवल भगवान की भक्ति से मिलती है।
5. क्या पितृ पूजा और भगवान की भक्ति दोनों कर सकते हैं?
हाँ, बिल्कुल। पितृ पूजा से पारिवारिक और सांस्कृतिक कर्तव्य पूरे होते हैं और भगवान की भक्ति से आत्मिक मोक्ष की प्राप्ति होती है। दोनों साथ करना संतुलित मार्ग है।
6. गीता के अध्याय 9 का सारांश क्या है?
अध्याय 9 का नाम “राजविद्या राजगुह्य योग” है। इसमें भगवान कृष्ण ने अर्जुन को सबसे गुप्त और श्रेष्ठ ज्ञान दिया है—जो है ईश्वर में अटूट भक्ति। भगवान बताते हैं कि जो भक्त सच्चे मन से प्रेम और श्रद्धा के साथ उनका स्मरण करता है, वह उन्हें पा लेता है। इसमें ईश्वर की सर्वव्यापकता, प्रेम और भक्तों की रक्षा का वचन दिया गया है।
7. मरते हुए व्यक्ति को गीता का कौन सा अध्याय सुनना चाहिए?
मरते समय गीता का अध्याय 8 “अक्षर ब्रह्म योग” सुनना श्रेष्ठ माना गया है, क्योंकि इसमें मृत्यु के समय ईश्वर का स्मरण कर परम धाम प्राप्त करने का उपदेश है।
8. गीता के अनुसार सबसे पवित्र क्या है?
गीता के अनुसार, सच्चा प्रेम और भक्ति सबसे पवित्र है। जो भी बिना स्वार्थ के, प्रेम और श्रद्धा से भगवान का स्मरण करता है, वही सबसे पवित्र है।
9. गीता का मूल उपदेश क्या है?
गीता का मुख्य संदेश है “कर्म करो, फल की चिंता मत करो” और ईश्वर में पूर्ण समर्पण करो। धर्म, भक्ति, और निस्वार्थ कर्म जीवन का आधार हैं।
10. गीता के कौन से अध्याय रोज पढ़ने चाहिए?
दैनिक पढ़ने के लिए लोग प्रायः अध्याय 12 (भक्ति योग), अध्याय 15 (पुरुषोत्तम योग) और अध्याय 18 (मोक्ष संन्यास योग) पढ़ते हैं।
11. मोक्ष प्राप्ति के लिए गीता का कौन सा अध्याय पढ़ना चाहिए?
मोक्ष के लिए अध्याय 15 और अध्याय 18 का पाठ श्रेष्ठ माना गया है।
12. पितरों के लिए गीता का कौन सा अध्याय पाठ करना चाहिए?
पितरों की शांति के लिए गीता का अध्याय 15 (पुरुषोत्तम योग) और अध्याय 7 का पाठ लाभकारी है।
13. पितरों को पानी देते समय कौन सा मंत्र पढ़ना चाहिए?
पितरों को जल अर्पण करते समय यह मंत्र बोला जाता है:
ॐ पितृभ्यः स्वधा नमः
या
ॐ पितृदेवाय नमः
14. पितरों को भोजन करते समय कौन सा मंत्र बोलना चाहिए?
भोजन अर्पित करते समय:
ॐ पितृभ्यः स्वधा नमः
साथ में श्रद्धा से मन ही मन पितरों के नाम का स्मरण करें।
15. पितरों को कितनी बार पानी देना चाहिए?
साल में विशेष रूप से पितृ पक्ष में, और यदि संभव हो तो अमावस्या या मासिक श्राद्ध पर जल देना अच्छा है। रोज़ सुबह भी तर्पण किया जा सकता है।
16. पूर्वजों के लिए एक शक्तिशाली प्रार्थना क्या है?
हे हमारे पितरों, माताओं, पूर्वजों, आप सबको हमारा प्रणाम। आप जहां भी हों, सुखी और शांत रहें। हम आपके आशीर्वाद से धर्म, भक्ति और सेवा में लगे रहें।
17. पितृ दोष हटाने के लिए क्या करना चाहिए?
- पितृ पक्ष में श्राद्ध, तर्पण और पिंडदान करें
- गाय को रोटी, कौओं को अन्न, कुत्तों को भोजन दें
- ब्राह्मण और गरीबों को भोजन कराएं
- गीता पाठ करें (विशेषकर अध्याय 15)
- मंदिर में दीपदान करें