जयद्रथ को सिद्धि कैसे मिली? महाभारत का रहस्य
महाभारत के 13वें दिन का युद्ध एक बेहद दर्दनाक घटना के लिए याद किया जाता है। अभिमन्यु का वीरगति को प्राप्त होना। इस घटना में जयद्रथ का बड़ा हाथ था। लेकिन एक सवाल हमेशा लोगों के मन में आता है कि-
जब पूजा-पाठ और भक्ति में निर्मल मन की जरूरत होती है, तो फिर जयद्रथ को सिद्धि कैसे मिल गई, जबकि वह दुर्भावना से भरा था?
इसका उत्तर जानने के लिए हमें पहले महाभारत की कहानी और सिद्धियों के नियम समझने होंगे।
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जयद्रथ को सिद्धि भगवान शिव की कठोर तपस्या से मिली, न कि पवित्र मन से। |
जयद्रथ का परिचय और उसकी दुर्भावना
जयद्रथ सिंधु देश का राजा था।
उसका स्वभाव घमंडी और प्रतिशोधी था।
द्रौपदी के अपमान की घटना के बाद से वह पांडवों के प्रति शत्रुता रखता था।
कुरुक्षेत्र युद्ध में उसने कौरवों का साथ दिया और 13वें दिन चक्रव्यूह में प्रवेश करने वाले पांडवों को रोकने का काम किया, ताकि अभिमन्यु अकेला फंस जाए।
जयद्रथ को सिद्धि कैसे मिली?
महाभारत के अनुसार, जयद्रथ ने एक समय भगवान शिव की कठोर तपस्या की थी।
उसकी तपस्या इतनी गहन थी कि भगवान शिव प्रसन्न हो गए और उसे एक वरदान दिया कि
युद्ध में तुमको कोई भी पांडव अकेले एक दिन तक नहीं हरा पाएगा, सिवाय अर्जुन के। अर्जुन भी सिर्फ सूर्यास्त के समय तुम्हें मार सकेगा।
यह वरदान जयद्रथ के मन की पवित्रता देखकर नहीं, बल्कि तपस्या की शक्ति देखकर दिया गया था।
देवता किसी की कठोर साधना को व्यर्थ नहीं जाने देते, चाहे साधक का मन शुभ हो या अशुभ।
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सिद्धि और निर्मल मन का अंतर
यहाँ हमें एक बड़ा आध्यात्मिक भेद समझना चाहिए वो ये की-
1. निर्मल मन – मोक्ष, भगवान की कृपा, और आत्मज्ञान के लिए जरूरी है।
इसमें अहंकार, ईर्ष्या, और द्वेष का स्थान नहीं होता।
यह मार्ग अंततः आत्मशांति और सद्गति देता है।
2. सिद्धि – किसी विशेष शक्ति या वरदान को कहते हैं, जो कठोर नियम, तपस्या और साधना से प्राप्त होती है।
यह भाव से ज़रूरी नहीं जुड़ी हो, बल्कि अभ्यास से जुड़ी होती है।
जैसे अग्नि, जो अच्छे-बुरे दोनों के लिए जलती है, वैसे ही साधना से मिलने वाली शक्ति किसी के भी हाथ आ सकती है।
जयद्रथ का अंत (मृत्यु)
जयद्रथ के वरदान को जानते हुए, अर्जुन ने 14वें दिन सूर्यास्त का भ्रम पैदा किया।
जैसे ही जयद्रथ अपने छिपने के स्थान से बाहर आया, अर्जुन ने उसे मार गिराया।
इस तरह, उसकी सिद्धि भी उसे हमेशा के लिए बचा नहीं पाई।
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दुर्भावना के साथ सिद्धि पाने के अन्य उदाहरण
महाभारत और पुराणों में ऐसे कई पात्र हैं जिन्होंने दुर्भावना रखते हुए भी सिद्धियां पाईं, लेकिन उनका अंत दुखद हुआ -
1. रावण – शिवभक्त लेकिन अहंकारी
सिद्धि कैसे मिली?
रावण ने कैलाश पर्वत उठाने की कोशिश में भगवान शिव की कठोर तपस्या की। प्रसन्न होकर शिव ने उसे कई वरदान और शक्तियां दीं — जैसे कि कोई भी देवता, असुर या राक्षस उसे मार न सके।
दुर्भावना – उसने इन शक्तियों का उपयोग अत्याचार और अधर्म फैलाने में किया।
अंत – भगवान राम के हाथों मृत्यु, और पूरे वंश का नाश।
2. हिरण्यकश्यप – ब्रह्मा से वरदान
सिद्धि कैसे मिली?
ब्रह्मा की घोर तपस्या करके ऐसा वरदान लिया कि वह न दिन में, न रात में, न अंदर, न बाहर, न मनुष्य, न पशु, न हथियार से मरे।
दुर्भावना – उसने इस शक्ति का उपयोग भगवान का विरोध और अपने बेटे प्रह्लाद को सताने में किया।
अंत – भगवान नरसिंह ने वरदान के loophole (नियम में कमी) से उसका वध किया।
3. बाणासुर – शिव का वरदानी
सिद्धि कैसे मिली?
भगवान शिव की भक्ति करके 1000 भुजाओं और अजेय योद्धा बनने का वरदान पाया।
दुर्भावना – शक्ति पाकर उसने देवताओं और लोगों को डराना शुरू किया।
अंत – भगवान कृष्ण ने उसका अभिमान तोड़ा, उसकी सारी भुजाएँ काट दीं।
4. शंखासुर – वरदान के साथ अहंकार
सिद्धि कैसे मिली?
तपस्या से वरदान मिला कि वह जल के अंदर अजेय रहेगा।
दुर्भावना – उसने वेद चुरा लिए ताकि किसी को यज्ञ न हो सके।
अंत – भगवान विष्णु ने मत्स्यावतार लेकर उसका वध किया।
5. जयद्रथ – शिव का वरदानी
सिद्धि कैसे मिली?
कठोर तपस्या से शिव ने वरदान दिया कि पांडव उसे दिनभर युद्ध में हरा न सकें, सिर्फ अर्जुन ही सूर्यास्त के समय मार सके।
दुर्भावना – इस शक्ति का उपयोग अभिमन्यु को मारने में किया।
अंत – अर्जुन ने सूर्यास्त का भ्रम पैदा करके उसका वध कर दिया।
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सीख
सिद्धि पाना आसान नहीं है, पर यह मन की पवित्रता का प्रमाण भी नहीं है। सिद्धि और वरदान किसी के तप, व्रत, और साधना के परिणामस्वरूप मिलते हैं, चाहे भाव शुभ हों या अशुभ।
लेकिन दुर्भावना और अधर्म अंततः विनाश का कारण बनते हैं। निर्मल मन ही अंततः भगवान की सच्ची कृपा और स्थायी शांति दिलाता है।
शक्तियां और सिद्धियां अस्थायी होती हैं; पवित्रता और धर्म ही स्थायी रक्षक हैं। दुर्भावना से मिली शक्ति, चाहे कितनी भी बड़ी हो, अंततः पतन का कारण बनती है।