अनैतिक संबंध का सच: श्रीमद्भगवद्गीता और गरुड़ पुराण की चेतावनी व सुधार का मार्ग
भूमिका
मानव जीवन में संबंधों का बहुत महत्व है। विवाह, प्रेम और निष्ठा जीवन को स्थिरता देते हैं। लेकिन जब कोई पुरुष या स्त्री - चाहे वह ब्राह्मण हो या किसी भी जाति का - विवाह या सामाजिक मर्यादा के बाहर जाकर अनैतिक संबंध (व्यभिचार) रखता है, तो यह न केवल व्यक्तिगत जीवन को बल्कि परिवार, समाज और आत्मा की पवित्रता को भी गहराई से प्रभावित करता है।
भारतीय धर्मग्रंथों में इस विषय पर बहुत स्पष्ट चेतावनी दी गई है। विशेष रूप से श्रीमद्भगवद्गीता और गरुड़ पुराण में इसके परिणाम, कारण और सुधार का मार्ग बताया गया है।
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चित्र में श्रीकृष्ण अर्जुन को धर्म और संयम का मार्ग दिखा रहे हैं, जबकि दूसरी ओर गरुड़ पुराण के अनुसार अधर्म के अंधकारमय मार्ग का संकेत है। |
1. अनैतिक संबंध क्या है?
अनैतिक संबंध का अर्थ है -
विवाह के बाहर शारीरिक या मानसिक संबंध रखना।
किसी और के पति या पत्नी के साथ संबंध रखना।
वासना में पड़कर संबंध बनाना, भले ही वह छुपकर हो।
धर्मशास्त्र में इसे परा-दाराभिगमन कहा गया है और यह महा-पाप (बहुत बड़ा पाप) की श्रेणी में आता है।
2. गीता की दृष्टि: पाप का आध्यात्मिक कारण
(क) वासना: पाप का मूल कारण
गीता अध्याय 3, श्लोक 39 कहती है:
आवृतं ज्ञानमेतेन ज्ञानिनो नित्यवैरिणा।
कामरूपेण कौन्तेय दुष्पूरेणानलेन च॥
अर्थ: वासना अग्नि के समान है, जो कभी तृप्त नहीं होती और यह मनुष्य के ज्ञान को ढक देती है।
(जब मनुष्य वासना में अंधा हो जाता है, तो वह सही-गलत की पहचान खो देता है। )
(ख) नरक का द्वार
गीता अध्याय 16, श्लोक 21 कहती है:
त्रिविधं नरकस्येदं द्वारं नाशनमात्मनः।
कामः क्रोधस्तथा लोभस्तस्मादेतत्त्रयं त्यजेत्॥
अर्थ: काम, क्रोध और लोभ — ये तीन नरक के द्वार हैं।
(अनैतिक संबंध काम का प्रत्यक्ष परिणाम है, जो नरक का कारण बनता है।)
(ग) संयम ही समाधान
गीता अध्याय 6, श्लोक 5 कहती है:
उद्धरेदात्मनाऽत्मानं नात्मानमवसादयेत्।
अर्थ: अपने मन को अपने द्वारा उठाओ, गिराओ मत।
(जो व्यक्ति अपने मन पर संयम कर लेता है, वह पाप से बच जाता है।)
3. गरुड़ पुराण की दृष्टि: पाप का परिणाम
(क) मृत्यु के बाद का दंड
गरुड़ पुराण, अध्याय 4:
परदाराभिगामी तु नरकं याति निश्चितम्।
महाघोरं महारौरवं दुःखसमन्वितम्॥
अर्थ: जो व्यक्ति किसी और के पति या पत्नी के साथ संबंध रखता है, वह महाराौरव नामक भयानक नरक में जाता है, जहाँ अत्यंत दुःख भोगना पड़ता है।
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(ख) नीच योनि में जन्म
गरुड़ पुराण, अध्याय 5:
परदारेषु रमते यो जनः पापकर्मकृत्।
तस्य जन्मशतं यावत् कृमिरूपो भविष्यति॥
अर्थ: जो परस्त्री या परपुरुष से संबंध रखता है, वह सौ जन्म तक कीड़े-मकोड़े की योनि में जन्म लेता है।
(ग) इस जीवन में दुष्परिणाम
गरुड़ पुराण के अनुसार —
ऐसे व्यक्ति की प्रतिष्ठा नष्ट हो जाती है।
परिवार का विश्वास टूट जाता है।
समाज में अपमान होता है।
मानसिक शांति और धार्मिक पुण्य दोनों का नाश हो जाता है।
4. मनोवैज्ञानिक और सामाजिक दृष्टि
धार्मिक दृष्टि से यह पाप है, लेकिन मनोवैज्ञानिक दृष्टि से यह -
- आत्मग्लानि (Guilt) पैदा करता है।
- अविश्वास और तनाव बढ़ाता है।
- परिवार और समाज में टूटन लाता है।
सामाजिक रूप से -
- विवाह संस्था कमजोर होती है।
- बच्चों का मानसिक संतुलन बिगड़ता है।
- रिश्तों में विश्वास खत्म हो जाता है।
5. पाप से बचने और सुधार का मार्ग
(क) पाप का बोध
पहला कदम यह है कि व्यक्ति मान ले कि यह पाप है और इससे उसे तथा दूसरों को हानि हो रही है।
(ख) धर्मग्रंथ पढ़ना
गरुड़ पुराण → पाप के परिणाम और मृत्यु के बाद की यातनाएँ बताएगा, जिससे भय उत्पन्न होगा।
गीता → मन को संयमित करना, वासना पर नियंत्रण पाना और भक्ति का मार्ग अपनाना सिखाएगी।
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(ग) प्रायश्चित करना
- ईश्वर के सामने पश्चाताप करना।
- गलत संबंध तोड़ देना।
- दान, सेवा, और भजन-कीर्तन से पुण्य कमाना।
(घ) भक्ति और ध्यान
रोज़ भगवान का नाम जप करें -
- हरे कृष्ण हरे कृष्ण, कृष्ण कृष्ण हरे हरे…
- ध्यान और योग से मन को स्थिर करें।
(ङ) संगति बदलना
- बुरी संगति पाप की ओर ले जाती है।
- धार्मिक और सच्चे लोगों की संगति करें।
6. सुधार के लिए विशेष आध्यात्मिक क्रम
सुबह
- स्नान कर ईश्वर को प्रणाम करें।
- गीता अध्याय 3 और 16 पढ़ें।
दिन में
- व्यर्थ विचारों और संगति से बचें।
- सेवा और भक्ति कार्य करें।
शाम
- गरुड़ पुराण का 4-5 श्लोक पढ़ें।
- अपनी गलती पर आत्मचिंतन करें।
रात
- भगवान का नाम लेकर सोएँ।
- मन में संकल्प करें कि कल से और भी शुद्ध जीवन जिएँगे।
निष्कर्ष
अनैतिक संबंध न केवल धर्म के विरुद्ध है, बल्कि यह व्यक्ति, परिवार और समाज को भीतर से तोड़ देता है। श्रीमद्भगवद्गीता हमें सिखाती है कि वासना नरक का द्वार है और हमें संयम अपनाना चाहिए, जबकि गरुड़ पुराण हमें बताता है कि इस पाप का भयानक परिणाम मृत्यु के बाद भी भुगतना पड़ता है।
इसलिए जो कोई इस पाप में पड़ गया है, उसे तुरंत सुधार के मार्ग पर चलना चाहिए । पश्चाताप, संयम, धर्मग्रंथ का अध्ययन और भक्ति। यही सच्चा उद्धार है।
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धन्यवाद, हर हर महादेव🙏🙏
लेखक – My Vishvagyaan Team
ब्लॉग: myvishvagyaan