हिन्दू शब्द का वर्णन वेद और पुराण में क्यों नहीं है?

हिन्दू शब्द का वर्णन वेद और पुराण में क्यों नहीं है?

(एक गहन, सरल और स्पष्ट अध्ययन)

प्राचीन भारतीय ऋषि वटवृक्ष के नीचे ग्रंथ पढ़ते हुए, पृष्ठभूमि में पवित्र सिंधु नदी, सनातन धर्म की जड़ों का प्रतीक।
प्राचीन भारत के ऋषि वटवृक्ष के नीचे वेद-पाठ करते हुए, पृष्ठभूमि में बहती पवित्र सिंधु नदी — सनातन धर्म की प्राचीन जड़ों का प्रतीक।

भूमिका

जय श्री कृष्ण प्रिय पाठकों,

कैसे है आप लोग,आशा करते हैं कि आप स्वस्थ और प्रसन्नचित्त होंगे। 

अक्सर एक प्रश्न लोगों के मन में उठता है - "जब वेद और पुराण हमारे सबसे प्राचीन धर्मग्रंथ हैं, तो उनमें ‘हिन्दू’ शब्द का वर्णन क्यों नहीं मिलता?"

यह सवाल केवल जिज्ञासा नहीं है, बल्कि हमारी पहचान और इतिहास को समझने का भी माध्यम है।

हमारा धर्म आज "हिन्दू धर्म" के नाम से प्रसिद्ध है। लेकिन क्या वेदों के ऋषि-मुनियों ने कभी खुद को ‘हिन्दू’ कहा? क्या पुराणों में यह शब्द मौजूद है? अगर नहीं, तो फिर यह शब्द आया कहाँ से? और आज हम इसे क्यों अपनाए हुए हैं?

आइए, इस पूरे विषय को एक-एक करके सरल शब्दों में बहुत ही गहराई से समझते हैं।

1. वेद और पुराण का काल और स्वरूप

सबसे पहले हमें यह समझना होगा कि वेद और पुराण किस समय और किस संदर्भ में लिखे गए थे।

वेद – हमारे चार वेद (ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद और अथर्ववेद) दुनिया के सबसे प्राचीन धार्मिक और दार्शनिक ग्रंथ हैं। विद्वानों के अनुसार इनका काल लगभग 5,000 से 10,000 वर्ष पुराना हो सकता है।

इनका उद्देश्य ईश्वर, ब्रह्मांड, यज्ञ-विधि, और जीवन के नैतिक नियमों को समझाना था।

पुराण – ये ग्रंथ वेदों से बाद में रचे गए। पुराणों में सृष्टि की उत्पत्ति, देवताओं की कथाएँ, भूगोल, खगोल, और विभिन्न युगों की घटनाओं का वर्णन है।

दोनों ही ग्रंथ भौगोलिक पहचान से ज्यादा आध्यात्मिक पहचान पर केंद्रित हैं।

इसलिए इनमें किसी जातीय या राजनीतिक नाम जैसे "हिन्दू" का प्रयोग नहीं मिलता।

2. वेदों में आत्म-परिचय

वेदों में लोग खुद को आर्य कहते थे।

आर्य’ शब्द का अर्थ था — श्रेष्ठ गुणों वाला, सज्जन, उदार और सत्य का पालन करने वाला व्यक्ति।

यह कोई जातीय या नस्लीय शब्द नहीं था। जो भी सत्य और धर्म के मार्ग पर चलता, वह ‘आर्य’ कहलाता।

वेदों में समाज का परिचय इस तरह मिलता है:

ऋषि, यज्ञकर्ता और ब्रह्मचारी – जो आध्यात्मिक जीवन जीते थे।

जनपद और गोत्र – जो परिवार और वंश से जुड़े नाम थे।

कहीं भी यह उल्लेख नहीं है कि लोग खुद को "हिन्दू" कहते थे।

3. "हिन्दू" शब्द की उत्पत्ति

हिन्दू’ शब्द वास्तव में संस्कृत या वैदिक मूल का शब्द नहीं है।

यह विदेशी भाषाओं से आया।

विद्वानों के अनुसार, यह शब्द सिंधु से निकला है।

सिंधु – ऋग्वेद में बार-बार आया है। इसका अर्थ है – बड़ा नदी प्रवाह, विशेषकर आज का सिंधु नदी (इंडस नदी)

प्राचीन ईरानी (पारसी) लोग ‘’ को ‘’ उच्चारित करते थे।

इसलिए उनके लिए ‘सिंधु’ बन गया ‘हिंदु’।

पहले-पहल यह शब्द भौगोलिक पहचान के लिए प्रयोग हुआ -

हिंदु” मतलब सिंधु नदी के पार रहने वाले लोग।

4. "हिन्दू" शब्द का ऐतिहासिक सफर

(1) पारसी साम्राज्य में प्रयोग

छठी शताब्दी ईसा पूर्व में, जब ईरान के आकेमेनिड  (Achaemenid) साम्राज्य ने सिंधु क्षेत्र पर अधिकार किया, तो उन्होंने वहां के लोगों को "हिंदु" कहना शुरू किया।

यह किसी धर्म का नहीं बल्कि एक क्षेत्र का नाम था।

(2) यूनानियों का उच्चारण

यूनानी यात्री और इतिहासकार (जैसे हेरोडोटस) इसे इंडोस (Indos) बोलने लगे।

यहीं से आगे चलकर अंग्रेजी का शब्द India और Indian बना।

(3) अरब और मुस्लिम काल में

8वीं शताब्दी में जब अरबों का सिंधु पर आक्रमण हुआ, उन्होंने भी यहाँ के लोगों को "हिन्दू" कहा।

मुस्लिम इतिहासकारों ने यह शब्द गैर-मुस्लिम भारतीयों के लिए इस्तेमाल किया।

इस समय तक ‘हिन्दू’ का अर्थ भारत में रहने वाला और इस्लाम को न मानने वाला व्यक्ति हो गया।

5. वेद और पुराण में ‘हिन्दू’ शब्द क्यों नहीं है?

अब यह स्पष्ट हो जाता है कि ‘हिन्दू’ शब्द वेदों और पुराणों के समय में अस्तित्व में ही नहीं था।

इसके पीछे कुछ कारण हैं:

1. यह शब्द विदेशी उच्चारण से आया – वैदिक काल के लोग खुद को आर्य, वैदिक धर्मी या सनातनी कहते थे, न कि ‘हिन्दू’।

2. वेद और पुराण भौगोलिक लेबल नहीं देते – इनका उद्देश्य आध्यात्मिक सत्य और धर्म के नियम बताना है, न कि क्षेत्रीय नाम तय करना।

3. ‘हिन्दू’ शब्द बाद में प्रचलित हुआ – विदेशी शासकों और यात्रियों ने इसे अपनाया, जो वेद-पुराण काल से बहुत बाद की बात है।

क्या आप जानना चाहेंगे कि- क्या वेदों में भगवान का उल्लेख है? तो आप ये पढ़ सकते हैं। 

6. वेद और पुराण में कौन-सा नाम प्रयोग हुआ?

वेद और पुराणों में धर्म को कभी ‘हिन्दू धर्म’ नहीं कहा गया।

इसका नाम था:

  • सनातन धर्म – जिसका अर्थ है शाश्वत और अनंत धर्म।
  • वैदिक धर्म – जो वेदों पर आधारित है।
  • आर्य धर्म – जिसका पालन श्रेष्ठ गुणों वाले करते हैं।

इन नामों में धर्म के सिद्धांतों पर जोर है, न कि किसी भौगोलिक शब्द पर।

7. ‘हिन्दू धर्म’ शब्द का प्रचलन

भारतीय इतिहास में ‘हिन्दूq धर्म’ शब्द का असली प्रचलन मुस्लिम काल के दौरान हुआ और ब्रिटिश काल में यह स्थायी बन गया।

मुस्लिम काल में – ‘हिन्दू’ का अर्थ था गैर-मुस्लिम भारतीय।

ब्रिटिश काल में – अंग्रेजों ने प्रशासनिक सुविधा के लिए भारत के सभी परंपरागत धर्मों (शैव, वैष्णव, शाक्त, जैन, बौद्ध) को एक ही श्रेणी में रखकर ‘हिन्दू’ कहा।

धीरे-धीरे भारतीयों ने भी यह नाम स्वीकार कर लिया।

सभी अवतार भारत मे ही क्यों हुए ?जानने के लिए आप पढ़ सकते हैं। 

8. ‘हिन्दू’ और ‘सनातन धर्म’ में अंतर

हिन्दू धर्म – यह एक आधुनिक नाम है, जो विदेशी भाषा से आया है। यह पहचान आज भी ज्यादा सामाजिक और सांस्कृतिक है।

सनातन धर्म – यह मूल, आध्यात्मिक और शाश्वत धर्म है, जो वेद, उपनिषद, पुराण और गीता पर आधारित है।

इसलिए यह कहा जा सकता है कि हम असल में सनातनी हैं, लेकिन दुनिया हमें हिन्दू कहती है।

क्या आप जानना चाहेंगे कि - गुलाम बनाते समय हमारे 33 करोड़ देवी-देवता हमारी रक्षा के लिए क्यों नहीं आये तो अवश्य पढ़े। 

9. ‘हिन्दू’ नाम को लेकर विद्वानों की राय

कई विद्वान मानते हैं कि:

1. यह नाम बाहरी लोगों द्वारा दिया गया है, इसलिए हमें अपनी मूल पहचान ‘सनातन धर्म’ को महत्व देना चाहिए।

2. लेकिन हजारों साल के उपयोग के बाद यह नाम हमारी सांस्कृतिक पहचान बन गया है, इसलिए इसे नकारना भी मुश्किल है।

3. सही दृष्टिकोण यह है कि ‘हिन्दू’ और ‘सनातन धर्म’ को एक ही व्यापक पहचान के रूप में समझा जाए।

10. आज की स्थिति

आज ‘हिन्दू धर्म’ दुनिया के सबसे बड़े धर्मों में से एक है, जिसमें करोड़ों अनुयायी हैं।

भले ही वेद और पुराण में यह शब्द न हो, लेकिन इसकी जड़ें पूरी तरह वैदिक और सनातन परंपराओं में हैं।

हमारे लिए जरूरी है कि हम अपनी मूल पहचान को समझें -

हम वेद-पुराण के अनुयायी, भगवान के भक्त, और सनातन धर्म के धारक हैं।

11. संक्षेप में उत्तर 

  • वेद और पुराण में ‘हिन्दू’ शब्द इसलिए नहीं है क्योंकि:
  • यह वैदिक काल का शब्द नहीं है, बल्कि विदेशी भाषाओं से आया है।
  • वेद-पुराण में आध्यात्मिक पहचान को महत्व दिया गया है, न कि भौगोलिक या राजनीतिक पहचान को।
  • हिन्दू’ शब्द का प्रयोग सिंधु नदी के पार रहने वालों के लिए हुआ और बाद में भारतीय धर्म के लिए अपनाया गया।
  • इसलिए, ‘हिन्दू’ शब्द भले ही नया हो, लेकिन इसका अर्थ आज हमारे सनातन धर्म के अनुयायी से है।
  • और यही सनातन धर्म वेद और पुराण की आत्मा है।

अंतिम संदेश

प्रिय पाठकों,

  • शब्द बदल सकते हैं, लेकिन धर्म का सार नहीं बदलता।
  • चाहे हमें हिन्दू कहा जाए या सनातनी, हमारा मूल मार्ग वही है —
  • सत्य, अहिंसा, करुणा, भक्ति और धर्मपालन।
  • यही वेदों का संदेश है, यही पुराणों का, और यही हमारी असली पहचान है।

इसी के साथ विदा लेते है, आशा करते हैं कि आपको पोस्ट पसंद आई होगी। ऐसी ही रोचक जानकारियों के साथ विश्वज्ञान मे फिर से मुलाकात होगी, तब तक के लिए आप अपना ख्याल रखें, हंसते रहिए,मुस्कराते रहिए और औरों को भी खुशियाँ बांटते रहिए। 

धन्यवाद!

हर हर महादेव🙏🙏 जय श्री कृष्ण 

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