वेदों में महिलाओं को शिक्षा, यज्ञ और मंत्र-पाठ की अनुमति थी या नहीं?
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A Vedic Rishika (female sage) immersed in the study of Vedas under a sacred tree, symbolizing the divine tradition of women's education in ancient India. |
हर हर महादेव प्रिय पाठकों,
कैसे हैं आप सभी? आशा है कि शिवशंकर की कृपा से आप स्वस्थ, प्रसन्न और कष्टमुक्त होंगे।
1. वेदों की मूल भावना क्या है?
वेद भारतीय सनातन परंपरा के सबसे प्राचीन ग्रंथ हैं, जिन्हें अपौरुषेय कहा जाता है अर्थात् ये किसी मानव द्वारा रचे नहीं गए, बल्कि श्रुति के रूप में ऋषियों द्वारा सुने गए।
वेद चार हैं- ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद और अथर्ववेद। इनमें जीवन के हर क्षेत्र की बातें हैं धर्म, विज्ञान, समाज, शिक्षा, चिकित्सा, संगीत, कृषि, गणित और ज्योतिष आदि।
वेदों की मूल भावना है -सर्वे भवन्तु सुखिनः, अर्थात सबका कल्याण हो।
इसलिए, वेदों में स्त्री और पुरुष को समान रूप से आत्मा माना गया है दोनों का उद्देश्य मोक्ष है, और दोनों को परमात्मा तक पहुँचने का समान अधिकार है।
2. क्या वेदों में स्त्रियों को शिक्षा दी जाती थी?
उत्तर – हाँ, और बहुत स्पष्ट रूप से दी जाती थी।
अथर्ववेद का उल्लेख
"सा विद्या या विमुक्तये" यानी विद्या वही है जो मुक्त करे।
अथर्ववेद में उल्लेख है कि कन्याओं को भी वेदों की "सांगोपांग शिक्षा" दी जानी चाहिए, और उनके लिए स्त्री आचार्याएं (महिला शिक्षिकाएं) नियुक्त की जानी चाहिए।
यह सिद्ध करता है कि बालिकाओं की शिक्षा को वेदों में उतना ही महत्व दिया गया, जितना बालकों को।
3. क्या स्त्रियाँ ऋषि बनी थीं? क्या उन्होंने वेद मंत्र रचे?
हाँ। स्त्रियाँ भी ऋषि बनीं और उन्हें “ऋषिका” कहा गया। उन्होंने वेदों में मंत्रों की रचना की।
कुछ प्रमुख ऋषिकाएँ जिनके नाम से वेदों में मंत्र हैं
ऋग्वेद में 27 से अधिक ऋषिकाओं के नाम उपलब्ध हैं, जिनकी मंत्रदृष्टि मानी गई है।
ऋषिकाओं द्वारा रचे गए सूक्त यह सिद्ध करते हैं कि वे वेदों का अध्ययन करती थीं और साधना में पुरुषों के समान थीं।
जानिए क्या है आज की नारी में सीता जैसी मर्यादा या शूर्पणखा जैसी जिद – किस दिशा में जा रहा है समाज?
4. विवाह के मंत्रों में भी स्त्री के ज्ञान का उल्लेख
अथर्ववेद (14.1.20) में एक मंत्र है
"समञ्जन्तु विश्वानि भावानि त्वया सह पत्या गृहं गच्छ।"
अर्थात – हे स्त्री! अब तुम अपने पति के साथ गृहस्थ जीवन में प्रवेश करो और अपनी प्राप्त विद्या के अनुसार गृहस्थी को चलाओ।
इस मंत्र में "प्राप्त विद्या के अनुसार" शब्द यह दर्शाते हैं कि कन्याओं को शिक्षा दी जाती थी।
घर को सही से चलाना, नैतिक मार्ग पर रखना - यह स्त्री का उत्तरदायित्व था, और उसके लिए शिक्षा अनिवार्य थी।
5. स्त्रियाँ यज्ञ कर सकती थीं?
हाँ। वे स्वयं यज्ञ करती थीं और मंत्रोच्चारण भी करती थीं।
श्रौत सूत्रों और गृह्यसूत्रों में यह विवरण आता है कि-
स्त्रियाँ पति के साथ यज्ञ में सह-भागिनी होती थीं
कई स्त्रियाँ स्वयं भी यज्ञ करती थीं, विशेषकर ब्रह्मवादिनी स्त्रियाँ
वैदिक काल में कन्याओं का यज्ञोपवीत संस्कार (उपनयन) भी होता था
ब्रह्मचारिणी कन्याओं का उल्लेख अनेक ग्रंथों में आता है जो शिक्षा प्राप्त करती थीं और यज्ञों में भाग लेती थीं।
6. स्त्रियाँ मंत्र पढ़ सकती थीं?
बिलकुल।
अगर वेदों की ऋचाएँ ऋषिकाओं ने कही हैं, तो यह स्पष्ट है कि वे मंत्रों का उच्चारण करती थीं।
स्त्रियों ने न केवल मंत्र पढ़े, बल्कि मंत्रों की रचना भी की।
अवश्य पढ़ें यदि जानना चाहे की शास्त्रों में कैसे स्त्रियों का महत्त्व और उनकी शक्ति को दर्शाया गया है।
7. सामवेद और स्त्रियाँ
सामवेद को संगीत का वेद माना गया है। इसमें स्वर, राग और ताल की प्रणाली है।
संगीत का परंपरागत रूप स्त्रियों से जुड़ा रहा है।
इसलिए सामवेद की विद्या भी स्त्रियों को दी जाती थी।
इससे यह सिद्ध होता है कि वेदों में स्त्रियों को संगीत शिक्षा भी दी जाती थी, और वे वैदिक भजनों का गायन भी करती थीं।
8. अगर स्त्री को वेद न सिखाया जाए, तो वह संतान को कैसे संस्कार देगी?
यह बहुत सरल और व्यावहारिक तर्क है।
एक माँ ही बच्चे की पहली गुरु होती है। अगर माँ वेद-विहीन होगी, तो वह संतान को धर्म, नीति और सत्य का पाठ कैसे पढ़ाएगी?
वेदों ने इसीलिए स्त्रियों को शिक्षित करने की ज़िम्मेदारी समाज को दी थी, ताकि पूरा समाज शिक्षित हो सके।
9. क्या बाद में स्त्रियों को वेदाध्ययन से वंचित किया गया?
हाँ, यह दुर्भाग्यपूर्ण सत्य है।
समय बीतने के साथ सामाजिक व्यवस्था बदलती गई, और स्त्री की भूमिका को सीमित किया जाने लगा।
मध्यकाल में अनेक बंधन आए
विदेशी आक्रमणों और सामाजिक असुरक्षा के कारण स्त्रियों की शिक्षा घटती गई
कुछ पंडितों ने अपने-अपने मत बना दिए, जो वेदों के विरुद्ध थे
लेकिन मूल वेदों में कहीं भी स्त्री को वेदाध्ययन, यज्ञ या मंत्रोच्चारण से वंचित करने का आदेश नहीं है।
निष्कर्ष (Conclusion) क्या निकलता है?
निष्कर्ष यही निकलता है कि-
- वेदों में स्त्री और पुरुष दोनों को समान अधिकार प्राप्त हैं
- स्त्रियाँ ऋषिकाएँ बनीं, उन्होंने मंत्र रचे, यज्ञ किए, और गुरुकुलों में पढ़ाया
- वेदों में स्त्री शिक्षा को प्रोत्साहित किया गया है ,यह एक सत्य है
- समाज में जो भेदभाव बाद में आया, वह वेदों का हिस्सा नहीं, बल्कि मानव द्वारा रचित व्यवस्था है
अंत में एक सुंदर मंत्र:
"या देवी सर्वभूतेषु विद्या रूपेण संस्थिता।नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः।।"
अर्थ: जो देवी सब प्राणियों में "विद्या" रूप में स्थित हैं, उन्हें बारंबार नमस्कार है।
धन्यवाद!
हर हर महादेव 🙏
लेखक – My Vishvagyaan Team
ब्लॉग: myvishvagyaan