श्राद्धादि कर्म में कुशा आसन का प्रयोग क्यों नहीं करना चाहिए?
हर हर महादेव प्रिय पाठकों, कैसे हैं आप लोग, हम आशा करते हैं कि आप ठीक होंगे।
हिन्दू धर्म में प्रत्येक कर्म, प्रत्येक नियम और प्रत्येक परंपरा का अपना गहरा महत्व है। हमारे ऋषि-मुनियों ने साधारण दिखने वाली वस्तुओं में भी गहन आध्यात्मिक और वैज्ञानिक रहस्य छिपा दिए हैं। इन्हीं में से एक है – कुशा (पवित्र घास) का प्रयोग।
श्राद्धादि कर्म में हम सबने देखा होगा कि कुशा का उपयोग बार-बार होता है। चाहे वह जल में डुबोकर छिड़काव करना हो, पिंडदान में प्रयोग करना हो, या फिर पवित्री के रूप में अंगूठी पहननी हो – कुशा हर जगह आवश्यक मानी जाती है। लेकिन शास्त्रों में एक विशेष बात कही गई है कि –
श्राद्धादि कर्म करते समय कुशा के आसन पर नहीं बैठना चाहिए।
यह सुनकर सामान्य व्यक्ति के मन में प्रश्न आता है – आखिर क्यों? जब कुशा इतनी पवित्र और ऊर्जा-संवर्धक है, तो फिर उसका आसन क्यों वर्जित है?
आइए, इस रहस्य को विस्तार से समझते हैं।
![]() |
श्राद्ध कर्म में कुशा का प्रयोग तर्पण, पिंडदान और पवित्री में किया जाता है, लेकिन आसन के रूप में इसका प्रयोग वर्जित है। |
1. कुशा का धार्मिक महत्व
कुशा एक विशेष प्रकार की घास है, जिसे संस्कृत में “कुश” कहा गया है। यह तीखी, सीधी और त्रिकोणाकार पत्तियों वाली होती है।
शास्त्रों में कहा गया है कि –
- कुशा भगवान विष्णु के शरीर से प्रकट हुई।
- इसे देवताओं की पवित्र कृपा का प्रतीक माना गया।
- यह पवित्रता, ऊर्जा और सुरक्षा प्रदान करती है।
- मनुस्मृति, यजुर्वेद और धर्मसूत्रों में कुशा को अनिवार्य रूप से धार्मिक कार्यों में प्रयोग करने का आदेश दिया गया है।
2. श्राद्ध का उद्देश्य और पवित्रता
श्राद्ध कर्म पितरों के तर्पण और उनकी तृप्ति के लिए किया जाता है। इस समय वातावरण सात्विक, शांत और अत्यंत शुद्ध होना चाहिए।
श्राद्ध में देवताओं का आह्वान नहीं, बल्कि पितरों का आह्वान किया जाता है।
पितरों को जल, पिंड, तिल, भोजन अर्पित किया जाता है।
इस समय आसन, वस्त्र, पात्र – सबका चयन नियमों से बंधा हुआ है।
3. कुशा का आसन क्यों वर्जित है?
अब आते हैं मुख्य विषय पर – आखिर क्यों श्राद्ध कर्म में कुशा के आसन पर बैठना मना है? इसके पीछे धार्मिक और तात्त्विक दोनों कारण हैं।
(1) कुशा ऊर्जा को रोकती और खींचती है
कुशा को एक “ऊर्जा-चालक” माना जाता है। यह आसपास की शक्तियों को सोख लेती है और नियंत्रित करती है।
देवकर्म (हवन, जप, यज्ञ) में यह ऊर्जा देवताओं तक पहुँचाने का माध्यम बनती है।
लेकिन पितृकर्म में, जहाँ सूक्ष्म लोक से पितरों का आह्वान किया जाता है, वहाँ कुशा-आसन पर बैठने से ये शक्तियाँ सीधा कर्ता के शरीर में आकर्षित हो सकती हैं।
इससे व्यक्ति शारीरिक और मानसिक रूप से प्रभावित हो सकता है, इसलिए शास्त्र इसे निषेध बताते हैं।
जानिए- एकोदिष्ट श्राद्ध का मह्त्व व पूजा सामग्री लिस्ट
(2) श्राद्ध और देवकर्म का भेद
देवकर्म (पूजा, यज्ञ, हवन) – यहाँ देवताओं को बुलाया जाता है। देवता ऊर्जात्मक होते हैं, अतः कुशा का आसन उन्हें आकर्षित करने में सहायक है।
पितृकर्म (श्राद्ध, तर्पण) – यहाँ पितरों की आत्माओं का आह्वान होता है। पितरों की स्थिति देवताओं जैसी नहीं होती, वे सूक्ष्म लोक में रहते हैं।
यदि कर्ता कुशा पर बैठ जाए तो यह सूक्ष्म ऊर्जा सीधा उसे प्रभावित कर सकती है, जो उचित नहीं है।
(3) शास्त्रों का निर्देश
धर्मशास्त्रों में स्पष्ट उल्लेख है –
“पितृयज्ञे तु न कुशासनम्”
अर्थात – पितृकर्म में कुशा के आसन का प्रयोग वर्जित है।
इसके स्थान पर
- मृगचर्म
- ऊन
- कपड़ा (वस्त्र)
- चटाई (दर्भ या बाँस की)
- का आसन अधिक उपयुक्त माना गया है।
(4) स्वास्थ्य और ऊर्जा संतुलन
- कुशा विद्युत-चालक की तरह काम करती है।
- शरीर और वातावरण की सूक्ष्म तरंगों को खींच लेती है।
- श्राद्धकर्म में यह असंतुलन पैदा कर सकता है।
- इसलिए ब्राह्मण और कर्ता को आरामदायक और संतुलनकारी आसन पर बैठने का निर्देश दिया गया है, न कि कुशा पर।
4. किन कर्मों में कौन सा आसन श्रेष्ठ है?
हमारे शास्त्रों ने हर प्रकार के धार्मिक कार्य के लिए उपयुक्त आसन बताए हैं।
(1) जप और ध्यान
कुशासन – विष्णु जप और ध्यान के लिए श्रेष्ठ।
ऊन का आसन – देवी उपासना और शक्ति साधना के लिए श्रेष्ठ।
मृगचर्म – शिव साधना और तपस्या के लिए सर्वोत्तम।
(2) यज्ञ और हवन
कुशा या दर्भ का आसन सर्वोत्तम माना गया है।
इससे अग्नि और मंत्रों की शक्ति नियंत्रित होती है।
(3) देवपूजा
कुशासन उपयुक्त है।
रेशमी या स्वच्छ वस्त्र का आसन भी प्रयोग किया जा सकता है।
(4) श्राद्ध और पितृकर्म
कुशा का आसन निषिद्ध है।
ऊन, मृगचर्म या स्वच्छ कपड़े का आसन श्रेष्ठ माना गया है।
5. कुशा का प्रयोग कहाँ करें?
यदि श्राद्ध में आसन में कुशा नहीं लेना है, तो फिर कहाँ प्रयोग करें?
पवित्री अंगूठी बनाकर धारण करें।
जल पात्र को कुशा से चिह्नित करें।
पिंडदान में तिल और अन्न के साथ कुशा रखें।
तर्पण के समय जल में कुशा डालें।
इस प्रकार कुशा का प्रयोग आवश्यक तो है, लेकिन केवल आसन में नहीं।
जानिए- महा भरणी श्राद्ध और मघा श्राद्ध: पौराणिक महत्व, तिथियां और धार्मिक मान्यता
6. वैज्ञानिक दृष्टिकोण
कुशा के बारे में वैज्ञानिक भी मानते हैं कि –
- इसमें बैक्टीरिया और कीटाणु नष्ट करने की क्षमता है।
- यह नकारात्मक विकिरणों को रोकती है।
- वातावरण को शुद्ध करती है।
लेकिन चूँकि यह अत्यधिक ऊर्जा-संवेदनशील है, इसलिए श्राद्ध जैसे सूक्ष्म कर्म में इसे आसन के रूप में प्रयोग करना उचित नहीं।
7. निष्कर्ष
श्राद्धादि कर्म में प्रत्येक वस्तु और नियम का अपना निश्चित कारण होता है।
कुशा का प्रयोग अनिवार्य है, लेकिन इसका स्थान है
- तर्पण जल
- पिंडदान
- पात्र चिह्नित करना
- पवित्री अंगूठी
लेकिन आसन के रूप में यह वर्जित है क्योंकि यह ऊर्जा को सीधा कर्ता तक पहुँचा सकती है और पितृकर्म में असंतुलन उत्पन्न कर सकती है।
इसलिए शास्त्रों के अनुसार श्राद्ध में
- ऊन
- मृगचर्म
- कपड़ा या चटाई
- के आसन का प्रयोग करना ही सर्वोत्तम है।
अंतिम संदेश
हमारे पूर्वजों ने किसी भी नियम को अंधविश्वास से नहीं जोड़ा, बल्कि उसके पीछे गहरा तात्त्विक और वैज्ञानिक कारण रखा। यदि हम उन कारणों को समझें और उसी अनुसार आचरण करें तो न केवल हमारे कर्म सफल होंगे, बल्कि हमारे जीवन में भी शांति और संतुलन बना रहेगा
प्रिय पाठकों, आशा करते हैं कि आपको पोस्ट पसंद आई होगी। ऐसी ही रोचक जानकारियों के साथ विश्वज्ञान मे फिर से मुलाकात होगी, तब तक के लिए आप अपना ख्याल रखें, हंसते रहिए,मुस्कराते रहिए और औरों को भी खुशियाँ बांटते रहिए।
धन्यवाद, हर हर महादेव
FAQs – श्राद्ध में कुशा का उपयोग
1. श्राद्ध में कुशा का प्रयोग क्यों किया जाता है?
क्योंकि कुशा को पवित्र माना जाता है और यह ऊर्जा को आकर्षित व स्थिर करने की क्षमता रखता है। श्राद्ध में इसे पूर्वजों को आमंत्रित करने, तर्पण करने और पवित्र वातावरण बनाए रखने के लिए उपयोग किया जाता है।
2. अगर श्राद्ध में कुशा का आसन न बने तो क्या कोई दोष लगेगा?
नही, अगर कुशा का आसन उपलब्ध न हो, तो विकल्प के रूप में स्वच्छ कपड़ा, दरी या कंबल का उपयोग किया जा सकता है। भावना और श्रद्धा मुख्य होती है; सही नीयत से किया गया श्राद्ध दोष रहित माना जाता है।
3. क्या हर प्रकार की कुशा श्राद्ध में उपयोग की जा सकती है?
नहीं, केवल शास्त्रानुसार शुद्ध और ताज़ी कुशा का उपयोग करना चाहिए। गंदी, टूटी या पहले से इस्तेमाल की गई कुशा का उपयोग अशुभ माना जाता है।
4. क्या कुशा को केवल आसन के लिए ही उपयोग किया जाता है?
नहीं, कुशा से अंगूठी (पवित्री), तर्पण के समय जल में डालने, और वेदी पर स्थान चिह्नित करने के लिए भी उपयोग किया जाता है।
5. क्या महिलाओं को कुशा छूने या उपयोग करने की अनुमति होती है?
शास्त्रों में महिलाओं के लिए प्रत्यक्ष प्रयोग का उल्लेख कम मिलता है, लेकिन श्रद्धा से वे तर्पण, पूजन या मंत्र जाप के दौरान इसे पास रख सकती हैं। कुशा का महत्व लिंग से नहीं, भावना से जुड़ा है।
6. अगर कुशा उपलब्ध न हो तो क्या श्राद्ध किया जा सकता है?
हाँ, श्राद्ध भावना और नीयत से पूर्ण होता है। कुशा उपलब्ध न होने पर भगवान से क्षमा याचना करके साधारण जल और स्वच्छ आसन से भी विधि पूरी की जा सकती है।
7. श्राद्ध के बाद कुशा का क्या करना चाहिए?
श्राद्ध के बाद प्रयोग की गई कुशा को किसी पवित्र स्थान या नदी में प्रवाहित करें या स्वच्छ जगह पर respectfully रखें। इसे कचरे में फेंकना अशुभ माना जाता है।
8. क्या आधुनिक समय में कुशा का महत्व कम हो गया है?
नहीं, कुशा का महत्व आज भी वैसा ही है जैसा प्राचीन काल में था। बस लोग इसकी ऊर्जा और धार्मिक महत्व को समझने में थोड़े उदासीन हो गए हैं।