मृत्यु और पुनर्जन्म: क्या आत्मा को गर्भ तक पहुँचाने भी देवदूत आते हैं?- एक गंभीर विचार
हर हर महादेव प्रिय पाठकों, कैसे हैं आप लोग
आशा करते हैं आप ठीक होंगे ,खुश होंगे।
मित्रों! हम सभी ने जीवन में कभी न कभी यह प्रश्न जरूर सोचा होगा कि-
जब हम मरते हैं, तो आत्मा कहाँ जाती है?
और अगर आत्मा फिर से जन्म लेती है, तो वह कैसे तय करती है कि किस माता के गर्भ में जाएगी?
क्या उस यात्रा में भी कोई अदृश्य शक्ति उसकी मदद करती है?
क्या मृत्यु के बाद और जीवन के पहले दोनों पड़ावों पर यमदूत या देवदूत आत्मा के साथ रहते हैं?
आज हम इन्हीं बातों को सरल शब्दों में समझेंगे। इस लेख को पढ़ने के बाद आपको मृत्यु, आत्मा और पुनर्जन्म की यात्रा को एक नई दृष्टि से देखने का अवसर मिलेगा।
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मृत्यु उपरांत आत्मा को देवदूत माता के गर्भ में प्रवेश कराते हैं – पुनर्जन्म का रहस्य और दिव्यता। |
मृत्यु- आत्मा का एक पड़ाव
भारतीय संस्कृति में माना जाता है कि मृत्यु अंत नहीं है। हमारा शरीर नश्वर (मिट जाने वाला) है, पर आत्मा अमर है। श्रीमद्भगवद्गीता में भी भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन से कहा था-
न जायते म्रियते वा कदाचित्
अर्थात - आत्मा का कभी जन्म नहीं होता और न ही इसकी मृत्यु होती है।
जब कोई प्राणी मरता है, तो उसकी आत्मा शरीर को छोड़ देती है। यह पल बहुत रहस्यमय होता है क्योंकि उस समय प्राणी के कर्मों के अनुसार यमदूत आते हैं और आत्मा को साथ ले जाते हैं।
जैसे किसी स्कूल में परीक्षा खत्म होने के बाद बच्चों को घर छोड़ने के लिए बस आती है, वैसे ही मृत्यु के बाद आत्मा को सही स्थान तक पहुँचाने के लिए यमदूत आते हैं।
कोई पुण्यात्मा हो तो उसे देवदूत मिलते हैं, जो उसे अच्छे लोकों में ले जाते हैं।
मृत्यु के बाद आत्मा की यात्रा
शास्त्रों में कहा गया है कि आत्मा अपने अच्छे-बुरे कर्मों के अनुसार अलग-अलग लोकों में जाती है।
कोई स्वर्ग में, कोई पितृलोक में, कोई यमलोक में - यह सब कर्मों का खेल है।
मूल उद्देश्य है- आत्मा को कर्मफल दिलाना और उसे नए अनुभवों के लिए तैयार करना।
कुछ विशेष आत्माएँ जिनका भोग खत्म हो जाता है, उन्हें जल्दी से नया शरीर मिल जाता है। कुछ को अधिक समय लगता है।
पुनर्जन्म: आत्मा की वापसी
अब प्रश्न यह उठता है- आत्मा कब और कैसे लौटती है?
मान्यता है कि जैसे मृत्यु के बाद यमदूत आत्मा को ले जाते हैं, वैसे ही पुनर्जन्म के समय भी ईश्वर की व्यवस्था ही आत्मा को माता के गर्भ तक पहुँचाती है।
कुछ लोग इसे देवदूतों का कार्य मानते हैं, कुछ इसे प्रकृति की शक्ति कहते हैं।
आधुनिक विज्ञान इसे जन्म कहता है, पर धर्म और अध्यात्म इसे नया शरीर कहते हैं।
आत्मा वही रहती है- सिर्फ कपड़े बदल जाते हैं।
जैसे कोई पुराना वस्त्र छोड़ कर नया पहनता है।
क्या आत्मा अकेले जाती है?
यहाँ एक सुंदर बात जानने योग्य है-.आत्मा को कभी अकेले नहीं छोड़ा जाता। क्योंकि-
मृत्यु के बाद या जन्म से पहले- दोनों समय आत्मा के साथ अदृश्य रूप में देवदूत रहते हैं।
कहा जाता है कि गर्भधारण के समय भी आत्मा को माता के गर्भ में सही समय पर पहुँचाने में देवदूत मदद करते हैं।
क्यों?
क्योंकि यदि आत्मा सही समय पर न पहुँचे तो माता का गर्भधारण सफल नहीं होगा।
हर आत्मा का जन्म स्थान, माता-पिता, परिस्थितियाँ पहले से तय होती हैं।
यह सब ईश्वर की एक अद्भुत योजना है, जिसे कर्म सिद्धांत कहते हैं।
देवी-देवताओं की व्यवस्था
हमारे ग्रंथों में कई उदाहरण मिलते हैं कि जन्म और मृत्यु- दोनों में देवता, पितर और यमदूत-अदूतों की व्यवस्था रहती है।
गरुड़ पुराण, कथोपनिषद, महाभारत और कई पुराणों में इसका वर्णन आता है।
महाभारत में अश्वत्थामा का शापित होना, या भीष्म पितामह का इच्छा मृत्यु का वरदान- यह सब दिखाते हैं कि आत्मा के आने-जाने पर दिव्य शक्तियाँ काम करती हैं।
भगवान राम और सीता माता का जन्म भी दिव्य था। कहते हैं कि विष्णु के अंश के रूप में आत्मा धरती पर आई और देवताओं ने मार्गदर्शन किया।
आत्मा का गर्भ में प्रवेश
अब एक रोचक बात -
पुराणों में वर्णन है कि जब आत्मा गर्भ में प्रवेश करती है, तो वह गर्भ में पहले तीन महीनों तक पूर्व जन्म की स्मृतियाँ लिए रहती है।(क्या आप जानते हैं कि वह यादे, स्मृतियाँ क्या होती है जानने के लिये पढ़े-बच्चा गर्भ में क्या सोचता है )
फिर धीरे-धीरे माया का आवरण पड़ने लगता है और जन्म के बाद वह सब भूल जाती है।
कहा जाता है कि इस समय भी देवदूत आत्मा की रक्षा करते हैं ताकि वह सही रूप में जन्म ले सके।
जन्म लेते ही क्यों रोने लगते है बच्चे ?--जाने विष्णु पुराण के अनुसार
क्या यह सब कोई देख सकता है?
हमारी आँखें भौतिक संसार तक सीमित हैं।
जैसे हवा को देख नहीं सकते लेकिन अनुभव कर सकते हैं, वैसे ही आत्मा और देवदूतों को सामान्य व्यक्ति नहीं देख पाता।
कुछ सिद्ध महात्मा या ऋषि-मुनि दिव्य दृष्टि से यह सब देख सकते हैं।
मृत्यु और जन्म का यह चक्र क्यों?
कर्म सिद्धांत यही कहता है कि जब तक आत्मा अपने सारे बंधन समाप्त नहीं कर लेती, तब तक उसे जन्म-मृत्यु के चक्र में घूमना पड़ता है।
अंत में जब वह मोक्ष प्राप्त कर लेती है, तब उसे कोई शरीर धारण नहीं करना पड़ता।
जीवन को देखने का नया दृष्टिकोण
जब आप यह समझते हैं कि मृत्यु अंत नहीं है- तो जीवन में मृत्यु का डर कम हो जाता है।
फिर आप जानते हैं कि यहाँ जो भी है, वह एक यात्रा है। आपका हर अच्छा कर्म अगली यात्रा को सुंदर बना देता है। इसीलिए कहा गया-कर्म करो, फल की चिंता मत करो।
आत्मा को कैसे शांत रखें?
आत्मा को शांति मिलती है —
- सत्कर्म से
- प्रभु नाम जप से
- ध्यान से
- अच्छे विचारों से
आप जब भी किसी के लिए बुरा नहीं सोचते, तब आपके कर्म शुद्ध होते हैं और अगली यात्रा भी सुखद बनती है।
सारांश: क्या हमें डरना चाहिए?
नहीं!
मृत्यु से नहीं डरना चाहिए।
पुनर्जन्म से नहीं डरना चाहिए।
क्योंकि यह सब एक divine व्यवस्था है- जिसमें आपके साथ देवदूत, पितर और ईश्वर स्वयं रहते हैं।
आप अकेले कभी नहीं हैं। कभी नहीं थे। कभी नहीं रहेंगे।
अंत में एक सुंदर संदेश
जीवन एक सुंदर यात्रा है। मृत्यु एक द्वार है। पुनर्जन्म एक नया अवसर है।
अपने कर्मों को सुंदर बनाएँ ताकि आत्मा को हर यात्रा में ईश्वर की कृपा मिलती रहे।
आपने यह ब्लॉग पढ़ा, इसके लिए धन्यवाद!
यदि यह लेख आपके मन को छू गया हो तो इसे दूसरों के साथ जरूर बाँटें ताकि और लोग भी मृत्यु और पुनर्जन्म को लेकर डरें नहीं, बल्कि इसे आत्मज्ञान का माध्यम समझें।
जय श्री हरि!