परिवर्तनी एकादशी और परिवर्तनी योग: जीवन बदलने वाले आध्यात्मिक रहस्य

परिवर्तनी एकादशी और परिवर्तनी योग: जीवन बदलने वाले आध्यात्मिक रहस्य 

जय श्री कृष्ण प्रिय पाठकों,कैसे हैं आप लोग, हम आशा करते हैं कि आप ठीक होंगे।

मित्रों! आज की इस पोस्ट में हम विस्तार से जानेंगे परिवर्तनी एकादशी और इसके साथ जुड़े हुए विभिन्न परिवर्तनी योगों के बारे में। यह विषय केवल धार्मिक दृष्टि से ही नहीं बल्कि आध्यात्मिक और जीवन-दर्शन के स्तर पर भी गहन महत्व रखता है। कहा जाता है कि परिवर्तनी योग का समय वह क्षण होता है जब पूरी सृष्टि में ऊर्जा का प्रवाह विशेष रूप से सक्रिय रहता है और इसका सीधा असर मनुष्य के जीवन, कर्म और भाग्य पर पड़ता है।

इस पोस्ट में आप पायेंगे -

  1. परिवर्तनी एकादशी क्या है?
  2. इसकी पौराणिक कथा और महत्व।
  3. परिवर्तनी एकादशी पर व्रत और पूजन विधि।
  4. परिवर्तनी एकादशी का ज्योतिषीय महत्व।
  5. परिवर्तनी योग क्या हैं?
  6. अलग-अलग परिवर्तनी योग और उनका महत्व।
  7. इन योगों का मानव जीवन पर प्रभाव।
  8. परिवर्तनी योगों में किए जाने वाले कर्म और साधना।
परिवर्तनी एकादशी पर भगवान विष्णु शेषनाग पर योगनिद्रा में करवट बदलते हुए
परिवर्तनी एकादशी- वह दिन जब भगवान विष्णु योगनिद्रा में करवट बदलते हैं।


1. परिवर्तनी एकादशी क्या है?

परिवर्तनी एकादशी भाद्रपद शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को आती है। इसे पार्श्व एकादशी, जलझूलनी एकादशी, या डोल ग्यारस भी कहा जाता है। यह दिन विशेष रूप से भगवान विष्णु को समर्पित है।

इस एकादशी का नाम परिवर्तनी इसलिए पड़ा क्योंकि इसी दिन भगवान श्रीहरि विष्णु योगनिद्रा में करवट बदलते हैं। आषाढ़ शुक्ल एकादशी से लेकर कार्तिक शुक्ल एकादशी तक वे क्षीरसागर में शेषनाग की शैया पर योगनिद्रा में रहते हैं। इस अवधि को चातुर्मास कहा जाता है। भाद्रपद शुक्ल की यह एकादशी भगवान के करवट बदलने का दिन मानी जाती है।

2. पौराणिक कथा और महत्व

पुराणों के अनुसार, राजा बलि ने जब अपना सर्वस्व दान कर दिया था तब भगवान विष्णु वामन रूप में उन्हें पाताल लोक भेजकर स्वयं उनके द्वारपाल बन गए। इसी समय से विष्णु जी चार महीने तक क्षीरसागर में विश्राम करने लगे।

भाद्रपद शुक्ल की एकादशी को जब भगवान करवट बदलते हैं तो इसे परिवर्तन का सूचक माना जाता है। यह केवल देवताओं का ही नहीं, बल्कि धरती पर जीवों के जीवन में भी परिवर्तन लाने वाला दिन है।

इस एकादशी का व्रत करने से-

  • समस्त पाप नष्ट होते हैं।
  • पितरों को तृप्ति मिलती है।
  • भगवान विष्णु की कृपा से जीवन में सुख-समृद्धि आती है।
  • अधूरे कार्य पूरे होने लगते हैं।

3. परिवर्तनी एकादशी व्रत और पूजन विधि

  • प्रातःकाल स्नान कर व्रत का संकल्प लें।
  • भगवान विष्णु के चरणों में दीप, धूप, पुष्प, तुलसी और फल अर्पित करें।
  • श्रीहरि के ॐ नमो भगवते वासुदेवाय मंत्र का जप करें।
  • दिनभर उपवास करें और केवल फलाहार लें।
  • रात्रि में जागरण कर भजन-कीर्तन करें।
  • अगले दिन द्वादशी को व्रत का पारण करें।

4. ज्योतिषीय महत्व

परिवर्तनी एकादशी का समय ज्योतिष की दृष्टि से भी खास होता है। इस दिन सूर्य और चंद्रमा की विशेष स्थिति होती है। चंद्रमा का बढ़ता हुआ प्रभाव और सूर्य की सकारात्मक किरणें मिलकर ऐसा वातावरण बनाती हैं जो मानसिक शांति और आत्मबल देता है।

इसी कारण इस दिन ध्यान, जप और साधना से व्यक्ति के कर्मों की गति बदल जाती है।

5. परिवर्तनी योग क्या हैं?

परिवर्तनी योग का शाब्दिक अर्थ है - परिवर्तन लाने वाला योग।

यह वे विशेष समय या तिथियां हैं जब ग्रह-नक्षत्रों की स्थिति या देवशक्ति का प्रभाव हमारे जीवन में बड़ा परिवर्तन लाने की क्षमता रखता है।

6. अलग-अलग परिवर्तनी योग और उनका महत्व

(क) परिवर्तनी एकादशी योग

यह योग तब बनता है जब भाद्रपद शुक्ल एकादशी का व्रत किया जाता है। इसका प्रभाव जीवन में सकारात्मक बदलाव लाना है।

(ख) चातुर्मास परिवर्तनी योग

आषाढ़ से कार्तिक तक चलने वाले चातुर्मास में परिवर्तनी एकादशी के दिन भगवान करवट बदलते हैं। यह योग संकेत देता है कि साधना और तपस्या अब नए फल देने लगेंगे।

(ग) ग्रहों का परिवर्तनी योग

जब कोई ग्रह अपनी स्थिति बदलकर दूसरे स्थान पर प्रवेश करता है और इस दौरान योग विशेष रूप से बनता है, तो उसे परिवर्तनी योग कहा जाता है। जैसे:

  • गुरु का राशि परिवर्तन
  • शनि का राशि परिवर्तन
  • राहु-केतु का परिवर्तन

ये योग सामाजिक और व्यक्तिगत जीवन दोनों को प्रभावित करते हैं।

(घ) सूर्य का परिवर्तनी योग

जब सूर्य अपनी राशि बदलते हैं, विशेषकर सिंह से कन्या या तुला की ओर जाते हैं, तब यह परिवर्तन धर्म-कर्म के लिए महत्वपूर्ण माना जाता है।

(ङ) विवाह और धार्मिक कार्यों के परिवर्तनी योग

शास्त्रों के अनुसार, परिवर्तनी एकादशी के बाद से कई शुभ कार्यों के लिए पुनः द्वार खुल जाते हैं। विवाह, गृहप्रवेश आदि कार्य इस दिन से किए जाने लगते हैं।

जानिए क्यों मनायी जाती है मोक्षदा एकादशी और गीता जयंती एक ही दिन। 

7. इन योगों का मानव जीवन पर प्रभाव

1. मानसिक परिवर्तन – यह योग व्यक्ति के मन को स्थिर और आध्यात्मिक बनाता है।

2. कर्मफल में परिवर्तन – जो कर्म अधूरे पड़े होते हैं, वे अब धीरे-धीरे पूर्ण होने लगते हैं।

3. जीवनशैली में सुधार – व्यक्ति बुरे स्वभाव और आदतों को छोड़कर नए मार्ग की ओर बढ़ता है।

4. भौतिक समृद्धि – इस योग में दान-पुण्य करने से धन की वृद्धि होती है।

5. आध्यात्मिक उन्नति – साधना और मंत्रजाप के विशेष फल प्राप्त होते हैं।

8. परिवर्तनी योगों में क्या करें?

  • भगवान विष्णु का व्रत और पूजन करें।
  • तुलसी दल और पीले फूल अर्पित करें।
  • दान-पुण्य करें, विशेषकर अन्नदान और वस्त्रदान।
  • संध्या समय दीपदान करना बहुत शुभ माना जाता है।
  • श्रीहरि के नाम का स्मरण करें।

प्रिय पाठकों, परिवर्तनी एकादशी और इसके साथ जुड़े परिवर्तनी योग केवल धार्मिक मान्यता ही नहीं बल्कि जीवन को सही दिशा देने वाले संकेत भी हैं। ये हमें याद दिलाते हैं कि जीवन में परिवर्तन अनिवार्य है और समय-समय पर ईश्वर स्वयं हमारी सहायता करते हैं।

जो भी व्यक्ति इस एकादशी का व्रत करता है और परिवर्तनी योगों में सत्कर्म करता है, उसका जीवन सुख-समृद्धि और आध्यात्मिक प्रकाश से भर जाता है।

आशा करते हैं कि post पसंद आई होगीं ऐसी ही रोचक जानकारियों के साथ विश्वज्ञान मे फिर से मुलाकात होगी, तब तक के लिए आप अपना ख्याल रखें, हंसते रहिए,मुस्कराते रहिए और औरों को भी खुशियाँ बांटते रहिए। 

धन्यवाद, हर हर महादेव🙏🙏

लेखक – My Vishvagyaan Team

ब्लॉग: myvishvagyaan

परिवर्तिनी एकादशी और अन्य एकादशियों से जुड़े FAQs 

1. परिवर्तिनी एकादशी में क्या खाना चाहिए?

फल, दूध, दही, सूखे मेवे, मखाना, साबूदाना, शक्करकंद और सेंधा नमक का प्रयोग किया जा सकता है।

यदि फलाहार न हो पाए तो जल मात्र पर भी व्रत रखा जा सकता है।

2. एकादशी का व्रत कब से शुरू करना चाहिए 2025 में?

एकादशी व्रत दशमी तिथि की रात से ही अनाज का त्याग कर देना चाहिए।

2025 में प्रत्येक एकादशी की तिथि और मुहूर्त पंचांग अनुसार अलग-अलग होंगे। सामान्य नियम है:

व्रत एकादशी सूर्योदय से शुरू करके अगले दिन द्वादशी के पारण समय तक चलता है।

पारण प्रातःकाल 7 से 9 बजे के बीच करना उत्तम माना गया है (पंचांग देखकर सही समय देखें)।

3. सबसे शक्तिशाली एकादशी कौन सी है?

सभी एकादशियों का महत्व है, लेकिन निर्जला एकादशी को सबसे शक्तिशाली कहा गया है।

पद्मपुराण और भविष्यपुराण में वर्णित है कि केवल इस एक व्रत से सभी 24 एकादशियों का फल मिलता है।

4. परिवर्तिनी एकादशी को क्या करना चाहिए?

श्रीविष्णु का पूजन करें, तुलसी पत्र चढ़ाएँ।

व्रत रखें, फलाहार या निर्जल करें।

रात्रि जागरण करके हरिनाम संकीर्तन करें।

दान-पुण्य करें, विशेषकर वस्त्र और अन्नदान।

5. देव उठानी एकादशी पर हमें क्या करना चाहिए?

इस दिन भगवान विष्णु योगनिद्रा से जागते हैं।

विवाह, गृहप्रवेश, यज्ञ जैसे मांगलिक कार्यों की शुरुआत इसी दिन से की जाती है।

तुलसी विवाह का विशेष महत्व है।

भगवान विष्णु को शालग्राम शिला और तुलसी के साथ पूजन करना चाहिए।

6. एकादशी व्रत के क्या नियम हैं?

1. दशमी से ही अनाज और मांसाहार त्याग दें।

2. एकादशी को भगवान विष्णु का पूजन करें।

3. दिनभर जप, ध्यान और भजन करें।

4. असत्य, क्रोध, वाणी और आचरण पर संयम रखें।

5. द्वादशी को समय पर पारण करें।

7. वैकुंठ एकादशी किसे कहते हैं?

मार्गशीर्ष (धनुर मास) शुक्ल पक्ष की एकादशी को वैष्णव परंपरा में वैकुंठ एकादशी कहते हैं।

इस दिन वैकुंठ के द्वार खुलते हैं और व्रती को विष्णु लोक की प्राप्ति होती है।

विशेषकर दक्षिण भारत (तिरुपति, श्रीरंगम) में इसका बड़ा महत्व है।

8. पांच बड़ी एकादशी कौन सी हैं?

1. निर्जला एकादशी

2. देवशयनी एकादशी

3. परिवर्तिनी एकादशी

4. देवउठानी एकादशी

5. वैकुंठ एकादशी

9. सफलता के लिए कौन सी एकादशी है?

निर्जला एकादशी को सफलता, आयु वृद्धि और पाप मुक्ति के लिए श्रेष्ठ माना जाता है।

साथ ही परिवर्तिनी एकादशी जीवन में सकारात्मक परिवर्तन और बाधाओं को दूर करती है।

10. परिवर्तिनी एकादशी का शुभ मुहूर्त क्या है?

यह हमेशा भाद्रपद शुक्ल पक्ष की एकादशी को आती है।

पूजन और व्रत का शुभ समय सूर्योदय से लेकर रात्रि तक होता है।

पारण द्वादशी तिथि के सूर्योदय से प्रातःकाल तक करना चाहिए।

11. गलती से देवशयनी एकादशी का व्रत टूट जाए तो क्या करना चाहिए?

यदि व्रत भूलवश टूट जाए तो भगवान विष्णु से क्षमा याचना करें।

तुलसी दल और गंगाजल अर्पित करें।

अगले एकादशी व्रत को पूरे विधि-विधान से करें।

दान-पुण्य करना अनिवार्य है।

12. एकादशी में क्या न करें?

अनाज, दाल, चावल, गेहूं का सेवन न करें।

प्याज, लहसुन, मांसाहार और मदिरा से दूर रहें।

झूठ बोलना, क्रोध करना और अपशब्द कहना वर्जित है।

दिन में सोना नहीं चाहिए।

13. क्या एकादशी व्रत में चाय पी सकते हैं?

शास्त्रों में चाय का उल्लेख नहीं है, लेकिन कई भक्त स्वास्थ्य कारणों से केवल दूध/चाय लेते हैं।

आदर्श व्रत फलाहार या निर्जल है। यदि शरीर न सह सके तो चाय/दूध लिया जा सकता है।

14. मासिक धर्म में एकादशी का व्रत कैसे करें?

स्त्री मासिक धर्म में व्रत का संकल्प मन में कर सकती है।

शारीरिक पूजा न करें, केवल मन से भगवान का स्मरण और जप करें।

नजदीकी रिश्तेदार या परिवार के किसी सदस्य से पूजा करा सकती हैं।

15. एकादशी व्रत पहली बार कैसे शुरू करें?

दशमी को अनाज त्यागकर अगले दिन एकादशी को स्नान कर संकल्प लें।

श्रीहरि विष्णु का पूजन, मंत्रजप और व्रत करें।

द्वादशी को पारण कर गरीबों को दान दें।

पहली बार व्रत करने वाले के लिए फलाहार व्रत करना उपयुक्त है।

16. एकादशी किसकी बेटी है?

पद्मपुराण के अनुसार, एकादशी पापरूपी असुर से विष्णु भगवान की कृपा से प्रकट हुई देवी हैं।

उन्हें भगवान विष्णु की "मानस पुत्री" भी कहा जाता है।

एकादशी देवी के पूजन से पापों का नाश होता है।

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